Book Title: Dharma Sangraha Part 2
Author(s): Chandanbalashreeji
Publisher: Bhadrankar Prakashan

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Page 380
________________ ८१०] [धर्मसंग्रहः एक्कारस अंगाई, [प्र.सा./५२६] ५८० एमेव य पासवणे, [ओ.नि./६३४] ५८९ एक्कक्कं पंचदिणे, [ ] ७७६ | एमेव य मज्झिमिआ, [ पञ्च./६१८] ६५९ एगं एगस्सुवरिं, [प्र.सा./२३३] ३३८ | एयं अणंतरुत्तं, [सं.प्र.स./४६] एगं पि उदगबिंदू, [सं.प्र.देवा./१९७] २३८ [श्रा.ध./३६] ६९ एगंमि उदगबिंदुम्मि, [सम्बो.स./९५] १४२ | एयं सामायारिं, [आ.नि./७२३] ६५६ एगग्गस्स पसंतस्स, [ आ.नि./६९३] ६५० | एलुगं विक्खंभइत्ता [ ] ५२५ एगत्थ सव्वधम्मो, [ ] ४२५ | एवं अचलादिसु वि, [ पञ्चा.८/३५] ४५१ एगमुहूत्तं दिवसं, [सं.प्र.श्रा./१२०] १५४ | एवं अप्परिवडिए, [वि.भा./१२२३] ७२७ एगराइआ चउहिं [ ] एवं आयरिआई, [व्य.भा.३/१८२] ७४१ एगवए छब्भङ्गा, एवं खित्तसुरीए, [प्र.स./२२] ३८६ [श्रा.व.भ.प्र.१०/प्र.सा.१३३०] ९७ | एवं गच्छसमुद्दे, [ओ.नि./११७] ७०३ एगवए नव भङ्गा, [श्रा.व.भ.प्र.१२] ९९ एवं चिअ चउमासे, [प्र.स./३८] ३८७ एगवयणं दुवयणम् [ ] ७७८ एवं चिअ वयणेणं, [पञ्च./१३५९] ७३७ एगविह दुविह तिविहं, [प्र.सा./९४२] ६१ एवं छम्मासतवं, [ ] ७७३ एगविह सम्मरुई, [प्र.सा./९४३] ६२ एवं जा छम्मासा, [पञ्चा.१०/२२] ४५५ एगविहं दुविहेणं, [आ.नि./१५५९] ९५ एवं जिणपण्णत्ते, [सं.प्र.२/३२] ६२ एगसाडिअं उत्तरासंगं [ ] २२६ | एवं ता देवसिअं, [प्र.स./२५] ३८६ एगस्सायरसारा, [चे.म.भा./४०] २४३ | एवं न केवलज्ञानी, [ ] ३७३ एगाइ इगुणतीसूणयं पि, [प्र.स./३० ३८६ एवं नास्ति सुखं [यो.शा./आ.६१२] ६८३ एगागी पासत्थो [उ.मा./३८७] ७०६ | एवं पडिवत्तीए, [पञ्चा.१९/२७] ४७५ एगूणवासगस्स उ, [प.व./५८८] ४९० | एवं पडुपन्ने [ ओ.नि.भा./२६२] ५५१ एगो जइ निज्जमगो [आ.प./४११] ७५७ एवं पयईए च्चिअ, [पञ्चव./३५] ५३ एतच्छरीरधनयौवन- [ ] एवं पवत्तिणिसद्दो, [ पञ्च./१३२०] ७३८ एतत्सचिवस्य सदा, [षोड.२/९] ३१ एवं भव्यजनस्य [ ] एताश्चारित्रगात्रस्य, [यो.शा.१/४५] ६८१ एवं मुहुत्तबुद्धी, [प.च.] ३४० एते अतिचारा एव, [उ.द.वृ.१/६] २०५ एवं य शुद्धयोगेन, [ध.बि.४/२] ४८२ एतेष्वेवामनोज्ञेसु, [यो.शा.१/३३] ६७५ एवं वाया न भणइ, [श्रा.ध./३२] ६९ एतेऽहिगारिणो इह, [पञ्चा.३/७] २३४ | एवं विही इमो सव्वो, [श्रा.दि./७७] २४९ एत्थ पुण आहरणं, [उ.प./८४३] ७०४ | एवं व्रतस्थितो भक्त्या, एत्थ पुण एस विही, [पञ्चा.१५/८] ४३२ [यो.शा.३/११९] २१४ एमाई पडिसिद्धं, [प.व./५८०] ४९१ एवं संवेगकृद्धर्मः, एमाई सयणोचिअमह [हि.मा./२९८] ३५८ [ध.बि./१०-प.२९] ४९ एमेव अहोराई, [पञ्चा.१८/१८] ६९३ | एवं सो अट्ठारस- [ ] ७७३ एमेव एगराई, [पञ्चा.१८/१९] ६९३ | एवं स्कन्दकसाधु- [ ] २५८ ६९० D:\d-p.pm513rd proof

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