Book Title: Dharma Sangraha Part 2
Author(s): Chandanbalashreeji
Publisher: Bhadrankar Prakashan
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८१८]
[धर्मसंग्रहः जं जुज्जइ उवयारे, [ओ.नि./७४१] ५८५ | जइ मुग्गमासमाई, [ ]
१३५ जं णिहिअमत्थजायं,
जइ मे अणुग्गहं [ द.वै.५/१/९२] ५५४ [पञ्चा.१०/३३] ४५५ मे हुज्ज पमाओ, [य.दि./३६५] ६४२ जं तत्थ ठिआण भवे, [ ] ५४४ | जइ मे हुज्ज पमाओ, [आ.प./३३] ७६२ जं थिरमज्झवसाणं, [ध्या.श./२] ३१९ जइ मे हुज्ज पमाओ, [सं.पो./४] ४१६ जं दुक्कडं ति मिच्छा,
जइ लिंगमप्पमाणं, [आ.नि./११२४] ३४४ [आ.नि./६८६] ६४९ | जइ वि अ न जाइ सव्वत्थ, [ ] १२३ जं दुक्कडं ति मिच्छा,
जइ वि अ वयमाइएहि, [आ.नि./६८५] ६४८
[आ.नि./७१३] ६५४ जं न तयट्ठा की, [प्र.सा./८४९] ५४५ | जइ वि गुणा बहुरूवा, [ध.र./४२] ८५ जं नरए नेरइआ, [दे.श./९१] ४१७ | जइ वि न आहाकम्म, जं पि वत्थं व पायं वा
[व्य.भा./३७७२] ३४७ [द.वै.६/२०] १२२ | जइ वि पडिलेहणाए, [प.कु./५] ३०० जं पुण सपमाणाओ [ओ.नि./७२७] ५८१ | जइ वि मणमि [हि.मा./३१५] ३५९ जं भणि पज्जत्त- [प्र.तृ.सं./४६] १४२ | जइ वि हु पिवीलिगाई, जं मणवयणकाएहिं, [ ] ४१५
[नि.भा.३४००] १३० जं मोणंति पासहा, [आ.सू./१५५] ४९ | जइ वि हु फासुगदव्वं, जं सक्कं तं हिअए, [प्र.स./३२] ३८७
[नि.भा.३३९९] १३० जं सक्कइ तं कीरइ, [सं.प्र.स./३६] ५६ | जइ सव्वेसु दिणेसुं, [ ] ४१९ जं सम्मं ति पासह,
जइ होज्ज तस्स अणलो, [आचा.२/५/सू.१२५] ६३
[आ.नि./६७०] ६४७ जं साहूण न दिण्णं, [न.प्र./१२५] ३६२ | जइगुण काल निसिज्जा, जंबीरअंबजंबुअ- [श्रा.वि./१२वृ.] ४२३
[सामा./द्वा.११] ७३१ जंमि उ पोलिज्जंते, [सं.प्र.श्रा./८५] १३५ | जइधम्मस्सऽसमत्थे, [ ] जइ एगागी वि हु, [प्र.सा./५२३] ५८० | जइपज्जवासमपरो, [पञ्चा.१०/३४] ४५६ जइ जिणमयं पवज्जह, [प.व./१७२] ४८२ | जनाद्धा संघट्टो [ ]
६०४ जइ थंडिलं ण लब्भइ, [य.दि./२७४] ५६६ जणणी सव्वत्थ [आ.नि./१०९५] २७५ जड़ देसओ आहार- [श्रा.प्र.सू.चू.] १६० जणवय संमय ठवणा, [प्रव./८९१] ६२७ जइ न कस्सइ धारेइ, [श्रा.दि./७८ ] २४९ जणवय संमय ठवणा, [प्र.सा./८९१] ६६७ जइ परिहरई सम्मं, [पञ्च./६६६] ६६३ | जत्ता महूसवो खलु, [पञ्चा./९-४] ४२६ जइ पिच्छंति गिहत्था, [य.दि./२७५ ] ५६६ | जत्थ य एगो सिद्धो [आ.नि./९७५] २८३ जइ पुण निव्वाधाओ, [प.व./४४५] ५९० जत्थ सयं निवसिज्जइ, जइ पुण पासवणं से,
[हि.मा./३०५] ३५९ [ओ.नि.भा./२६५] ५५१ | जत्थ साहम्मिआ बहवे, [सु.सि./६०] ८४
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