Book Title: Dharma Sangraha Part 2
Author(s): Chandanbalashreeji
Publisher: Bhadrankar Prakashan
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परिशिष्टम् [३] धर्मसंग्रहवृत्तिगतोद्धरणानामकाराद्यनुक्रमः ॥]
[८१९ जनकचोपकर्ता च, [ ] ३५६ | जह सागरंमि मीणा, [ओ.नि./११६] ७०३ जन्तवस्तेषां संतानः | जह सिढिलमसुइदव्वं [ ]
८४ __ [यो.शा.३/३३वृ.] १२७ | जह सिद्धाण पसिद्धा( पइट्ठा) जन्तुमिश्रं फलं पुष्पं, [यो.शा.३/७२]१३६
[पञ्चा.८/३४] ४५१ जन्नं समणे वा [अनु.द्वा./सू.२८] ३९१ | जहा सूरिआभे [ ]
२५९ जन्मजरामरणजले [ ]
जहाचिंतिय सपरिग्गह [ ] ६२६ जन्ममृत्युजराव्याधि- [ ]
जहाहिअग्गी जलणं [द.वै.९/१/११] ४८७ जमणुग्गए रविमि, [प्र.सा./८११] ५४२ जा उण एअविजुत्ता, [ पञ्च./१५८७ ] ७५३ जम्बूद्वीपे भ्रमन्तौ च, [द्वा.भा./९५] ६८८ जा खलु पमत्तजोगा, [पञ्च.१५८६] ७५३ जम्मं दिक्खा नाणं, [ ]
जा जयमाणस्स भवे, जम्मजराजीवाण- [पञ्च./६४८] ६६२ [पि.नि.६७१/ओ.नि.७६०] २१० जम्हा उ पंचरत्तं, [पञ्च./१५४०] ७७५ जा तं पि तेरसूणं, [प्र.स./३१] ३८७ जम्हा दंसणनाणा, [आ.नि./११७९] ३७३ | जा देवसिअं दुगुणं, [ प.व./४५०] ५९१ जम्हा वयसंपण्णा , [पञ्च./९३२] ७२९ जा य सच्चा अवत्तव्वा, [ द.वै./७/२] ६७० जयणा य धम्मजणणी,
जाए वि जो पढिज्जइ, [न.फ.कु./५] २१८ [उप.प./७६९] १४८ | जाओ अ अजाओ अ, जयणा य पयत्तेणं, [पञ्चा.७/२९] ४४४
1 [व्य.भा.४/१५] ७४६ जलकान्तो जलप्रभः [द्वा.भा./७१] ६८७ जातु मोहोदयात् [पञ्चा.१७.] २१९ जलक्रीडान्दोलनादि- [यो.शा.३/७९] १४६ जानीते जिनवचनं, [स्त्री.नि./४] जलेन देहदेशस्य, [स्नानाष्टके/२] २२३ | जापस्त्रिविधो- [प्र.पद्ध.] २१७ जव जवजव गोहुम, [ ]
१३९ | जामिणिपच्छिमजामे, [य.दि./३] २१६ जस्स जहा पडिलेहा, [ओ.नि./६३१]५६८ | जामिणिपच्छिमजामे, [य.दि./३] ४९५ जस्स नो इमं उवगयं [ ]
७३ जामिणिविरामसमए, [य.दि./९] ४९६ जस्स य जोगमकाऊण,
जायइ सचित्तया से, [प्र.सा./८८२] १४१ [ओ.नि./४२८] ५२० जायसमत्तविभासा, [पञ्च./१३३५] ७४८ जह अब्भत्थिज्ज परं,
जारिसतारिसवेसो, [सं.प्र./८२] २९२ [आ.नि./६६८] ६४७ जाव नियमं पज्जुवासामि [प्र.सू.चू.] १५२ जह गमागमाई, [ ] ३७२ जाव मज्जणघराओ [ ]
२५८ जह गेहं पइदिवसं पि, [ ] ३८२ जावंतिसमुद्देस, [पि.नि./२३०] ५२९ जह जच्चबाहलाणं, [आ.नि./६७८] ६४८ | जावइआ य सुणंती, [पञ्च./१००४]६५३ जह जह अप्पो लोहो, [सं.प्र.श्रा./६१] १२२ जावज्जीवं गुरुणो, [प्र.सा./८६३] ७५७ जह जह बहुस्सुअसंमओ [ स.प्र./६६] ७३० जिअदु व मरदु व जीवो, जह बालो जंपतो, [पञ्चा.१५/४७] ४३८
[प्र.सा./३१७] ६८० जह मिम्मयपडिमाणं, [चे.म.भा./५४] २४४ | जिट्ठामूले आसाढ- [य.दि./४८] ३३०
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