Book Title: Dharma Sangraha Part 2
Author(s): Chandanbalashreeji
Publisher: Bhadrankar Prakashan

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Page 390
________________ ८२०] [धर्मसंग्रहः जिणकप्पो उ गीअत्थो, जीवाण कुंथुमाईण, [सं.प्र.श्रा.८३] १३० [बृ.क.भा./६९१] ७१३ | जीवाण बोहिलाभो, [गाथा./२१९] २४९ जिणगिहण्हवणं [श्रा.वि./१३] ४२४ | जीवादीणमधिगमो, [ ] जिणगिहपमज्जणं तो, जीवास्तथानिवृत्ति- [सौ.न.१६/२९] ८२ [चे.वं.म./१९५] २४२ | जीहाए वि लिहंतो, जिणनमणमुणिणमंसण- [य.दि./६] ४९६ [व्य.भा.१/३८२] ७३६ जिणपवयणवुड्डिकर, [श्रा.दि./१४२] २९५ जुत्तो पुण एस कमो, जिणपवयणवुड्डिकर, [श्रा.दि./१४३] २९५ [पञ्चा.१०/४९] ४५७ जिणपवयणवुद्धिकरं, [श्रा.दि./१४४] २९५ | जे अगहिअधम्मा [य.दि./१५५] ५१७ जिणभवणकारणविही, [पञ्चा.७/९] ४४१ | जे आवि नागं [ द.वै.९/१/४] ४८७ जिणभवणबिंबठावण जे आवि मंदि त्ति [द.वै.९/१/२] ४८७ [सं.प्र.देवा./१९५] २३७ जे इमे अज्जत्ताए जिणभवणबिंबपूआ, [भ.सू.१४/९/५३७] ४८४ [चे.म.भा./१४२] २४४ | जे उ तह विवज्जत्था, जिणभवणम्मि अवण्णा, [सं.प्र./८०] २९२ [पञ्चा.११/३७] ४८७ जिणभवणाई जे [ श्रा.दि./१००] ४४५ | जे उण कालग्गाही, [य.दि./९२] ५०८ जिणरिद्धिदसणत्थं, [ये.वं.म./२७] २२९ | जे उण संमत्तं वा, [य.दि./१५६] ५१७ जिणवयणमेव तत्तं, [पञ्च./१०६३] ६२ जे केऽवि गया [सं.प्र.श्रा./११७] १५३ जिणवयणे पडिकुटुं, [प.व./५७४] ४९१ | जे णं पुरिसे अगणि- [भ.सू.] १४७ जिणवरआणारहिअं, [सं.प्र.दे./१०२] २९५ | जे निच्चमप्पमत्ता, [य.दि./५६] ३३९ जिणवरपवयण- [ ] जे मे जाणंति जिणा, जिणसासणे कुसलया, [प्र.सा./९३५ ] ७६ [प्रा.सा.द्वा./१९] ७६१ जिणा बारसरूवाणि, जे समयसारगहणे, [य.दि./१०५] ५१० [ओ.नि./६७१] ५७० | जेण भासिएण [प्र.आ.चू.] ११५ जिनबिम्बकारणविधिः [षोड.७/२] ४४६ | | जेहिं सविआ न [ओ.नि./६९७] ५७५ जिनभवनं जिनबिम्बं, [ उ.सा./२७] २७० जो अत्थिकायधम्म, [प्र.सा./९६०] ६७ जिनभवने जिनबिम्बं [षोड.७/१] ४४५ | जो अप्पलद्धिगो खलु , [ ] ६४६ जिनास्तदुक्तं, जीवो वा, जो आयरेण पढम, [प.व./२०] ४७४ [यो.शा.३/१५३वृ.] ७२६ | जो किर पहणइ, [श्रा.दि./२०३] ४२६ जिनेषु कुशलं चित्तं, [यो.दृ/२३] २२ | जो गुणइ लक्खमेगं, जीर्णे समुद्धृते, [ ] ४४५ [न.फ.कु./१२] २१८ जीवदयट्ठा पेहा, [ प.व./२५८] ५०४ | जो चेव य जिणकप्पे, जीवा थूला सुहुमा, [सं.प्र.श्रा./२] ११२ [पञ्च./१५४१] ७७५ जीवाइ नव पयत्थे, [ नव.प्र./५१] ५५ | जो जह व तह व [ ओ.नि./४४७] ३६२ D:\d-p.pm513rd proof

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