Book Title: Dharma Sangraha Part 2
Author(s): Chandanbalashreeji
Publisher: Bhadrankar Prakashan
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८३२]
[धर्मसंग्रहः पडिलेहिअ सुपमज्जिअ,
पणपहर माहफग्गुण [ ] १४० [य.दि./१७३] ५१९ | पणया पच्चंतनिवा, पडिलेहिऊण वसहि उवहिं,
[आ.नि./११०३] २७६ [प.व.२६३] ५०६ | पणवीसमद्धतेरस, [ आ.नि./१५३२] ३८८ पडिलेहिज्जइ पढम, [य.दि./८१] ४९८ | पणिहाणं मुत्तसुत्तीए, [चै.मू.भा./१८]२३२ पडिवज्जइ संपुण्णो, [पञ्चा.१८/४] ६९२ | पणिहाणजोगजुत्तो, पडिवन्नसग्गाहो [ ]
[दश.वै.नि./१८५] ३७४ पडिसिद्धाणं करणे [वं.सू./४८] ३९० पत्तं असोहयंतो, [य.दि./२१३] ५५० पढइ सुणेइ गुणेइ, [ ]
४११ | पत्तं पत्ताबंधो, [प.व./७८०] ६११ पढमं आवत्ततिगं [ बृ.वं.भा./२३] ३१७ | पत्तं पत्ताबंधो, [ओ.नि./६६८] ५७० पढमं जईण दाऊण [उ.मा./२३८] ४०४ | पत्तं पत्ताबंधो, पढमं नाणं तओ दया, [द.वै.४/९०]२८१ [प.व./७७२, ओ.नि./६६८] ५१२ पढमं नाणं तओ दया,
पत्तं पमज्जिऊणं, [ओ.नि./२९४] ५१५ [द.वै./४/३३] ६५८ पत्तट्ठवणं तह [ओ.नि./६९४] ५७४ पढमं लूहिज्जंते, [य.दि./२५९] ५६२ | पत्तमपत्ते रिक्खं, पढमंमि अ संघयणे,
[बृ.क.भा./१४५१] ७१४ 1 [व्य.भा./१०-५३७] ७५५ | पत्ताणं पक्खालण- [य.दि./२५०] ५५९ पढमंमि सव्वजीवा, [आ.नि./७९१] ६६५ | पत्ताणं पुप्फाणं, [बृ.क.भा./९८०] १३९ पढमंमि खमासमणे, [य.दि./३५५] ६३७ पत्ताबंधपमाणं, [ओ.नि./६९३] ५७४ पढमंमी एगिदिअ- [पञ्च./६५५] ६९५ पढमकरणभेएणं, [प.व./८] ४७५
[बृ.क.भा./१४५२] ७१४ पढमपवेसे सिरनामणं
पत्ते भिक्खासमए, [य.दि./१७२] ५१९ [बृ.वं.भा./३१] ३१८ | पत्तेअबुद्धकहणे, [आ.नि./११५१] ४८२ पढमप्पहराणीअं, [प्र.सा./८१३] ५४२ | पत्तेअबुद्धसाहूण, [प्र.सा./५२४] ५८० पढमहिगारे वंदे, [चै.वं.भा./४३] ३७३ | | पत्तो सुसीससद्दो, [ध.र./१३२] ४८८ पढमा उवस्सियंमी,
पत्थावो पुण होउ, [पञ्चा./९-११] ४२६ [बृ.क.भा./१३३५] ७६९ | पत्राणां पुष्पाणां [बृ.क./९८३.] १३९ पढमा भासा सच्चा, [प्र.सा./८९०] ६६६ | पदं पदेन मेधावी, पढमिक्को तिन्नि तिआ,
1 [ध.बि.अ./३प्रान्ते गा.१७] ४५६ [श्रा.व.भ.प्र.६] ९९ | | पद्मासनसमासीनो, [ पूजा.१८] २३९ पढमे छच्चावत्ता [बृ.वं.भा./३०] ३१८ | पनरस तीस छपन्ना, [वि.स./११] २५४ पढमे ठाणे तेरस, [ प्रत्या.भा./६] ३२६ | पभणंति खमासमणं, [ य.दि./२८१] ५६८ पढिआइ वास चिइवय, [ ] ६६४ | पभणंति तहा सुत्तं [ य.दि./३३] ३७६ पणदिण मीसो लुट्टो, [ ] १४० | पभावई पहाणा [ नि.चू.]
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