Book Title: Dharma Sangraha Part 2
Author(s): Chandanbalashreeji
Publisher: Bhadrankar Prakashan

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Page 417
________________ परिशिष्टम् [३] धर्मसंग्रहवृत्तिगतोद्धरणानामकाराद्यनुक्रमः ॥] [८४७ सइविग्गहसीलतं, [पञ्च./१६५५] ७६० | सदा सामायिकस्थानां, सकषायत्वाज्जीवः [ तत्त्वा.९/२] ६८४ [यो.शा.३/३वृ.] १२४ सक्कत्थयं भणित्ता, [ य.दि./३५७] ६४२ | सदारसंतोसस्स [ उपा.द.१/५] १८३ सक्कारोऽब्भुटाणं, [द.वै.नि./४८वृ.] ७०१ सदोषमपि दीप्तेन, [यो.शा.४/८८] ६८६ सङ्कलाद् विजने [ ] २१७ सद्दर्शनेन मिथ्यात्वं, [यो.शा.४/८५] ६८५ सङ्गः सर्वात्मना [ ] १४ | सद्धा तिव्वभिलासो, [ध.र./९०] ४८७ सच्चं जसस्स मूलं, [ ] ११६ सद्य:संमूच्छितानन्त- [यो.शा.३/३३] १२७ सच्चितं जमचित्तं, [प.व./७४३] ५२८ | सन्धानमाम्रफलादीनां सच्चिताणं दव्वाणं [यो.शा.वृ.३/७२] १३२ [भग.२/५/ज्ञा.क.१/२२] २४१ | सन्नाए आगओ [ओ.नि./६२६] ५६७ सच्चित्त दव्व विगई [सं.प्र.श्रा./११] १४१ | सन्मृत्तिका-ऽमलशिलातलसच्चित्तं बहुबीअं, [श्रा.वि./१२वृ.] ४२३ [उ.त./३८] २०८ सज्झाए करणंमि अ, [ध.र./४३] ८५ | सपडिक्कमणो धम्मो, सज्झाए वंदित्ता [ ] ३०८ [कल्पपञ्चा./३२] ३७१ सज्झाएण पसत्थं, [उ.मा./३३८] ४१४ | सप्पं सयणे जणणी, सज्झानप्रशंसनमिति [ध.बि./८६] ३९ [आ.नि./११०४] २७६ सज्झाय-झाण-तव-ओसहेसु , समओ वेयालीअं [ ] ६०३ [आ.नि./१५१८] २६९ समणस्स भगवओ [ प्रा.सा./द्वा.१९] ७६२ सज्झायझाणगुरुजण समणे निग्गंथे फासुय- [भ.सू.] १६७ [य.दि./३५४] ६३७ | समणेण सावएण य, [आव.मू./३] ३९० सज्झायझाणतव- [आ.नि./१६९७ ] ३७७ | समणोवाअओ तत्थ, सज्झायाइस्संतो, [पञ्च./९०२] ७१९ [यो.शा.वृ.२/१७] ७२ सड्डेणं सइ विहवे, [ ] ३६३ | समणोवासयस्स णं भंते ! सततं वासितं स्वान्तं, [द्वा.भा.३७] ६८४ __ [भ.सू./२६३] ३६३ सत्तत्तरि सत्त सया, समभावंमि ठिअप्पा, [सं.प्र.श्रा./१३४] १६५ ___ [आ.नि./१६९३] ३७७ सत्तावरी विराली, समभूमितलादूर्ध्वं, [द्वा.भा./१०१] ६८९ [सं.प्र.श्रा.९१/प्र.सा.२३७] १३२ | समभूमितलादूर्ध्वं, [द्वा.भा./९२] ६८८ सत्तीइ संघपूआ, [पञ्चा.८/३८] ४२५ | समयं तु अणेगेसुं , [ पञ्च./६३६] ६६० सत्तीए संघपूआ, [पञ्चा.८/३८] ४५१ | समस्तलोकाकाशेऽपि, सत्तेगट्ठाणस्स उ, [आ.नि./१६००] ३२७ [यो.शा.४/६७] ६८२ सत्थपरिण्णा लोगविजओ [ ] ६०५ समानधार्मिकेभ्यश्च, [यो.शा.१/२९] ६७२ सत्थपरिन्नाछक्काय समिओ निअमा गुत्तो, [व्य.भा.३/१६९] ७४०] [बृह.क.भा./४४५१, निशीथभा.३७] ६९४ D:\d-p.pm5\3rd proof

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