Book Title: Dharma Sangraha Part 2
Author(s): Chandanbalashreeji
Publisher: Bhadrankar Prakashan
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परिशिष्टम् [३] धर्मसंग्रहवृत्तिगतोद्धरणानामकाराद्यनुक्रमः ॥]
[८१७ चाउद्दसट्ठमुद्दिट्ठ- [प्र.प./२४७] ४१९ | छक्कायदयावंतोऽवि, चाउद्दसिं पन्नरसिं, [ग.वि./७] ४७९
[ओ.नि./४४१] ५२४ चाउम्मासिअवरिसे, [श्रा.वि./११व.] ४२० छक्कायरक्खणट्ठा, [ओ.नि./६९१] ५७४ चाउस्सालाईए, [प.व./७१०] ५४४ | छट्ठीए बंभयारी सो, [ ]
४५५ चारगनिरोहवहबंध- [उ.मा./२८३] ४१७ | छण्हं तिहीण मज्झंमि, [श्रा.दि./२१] २१९ चारणानां हि गमनं, [यो.शा.३/३७.] १२४ | छत्तीसगुणसमन्नागएण [श्रा.जी./१६]४३९ चारित्तंमि जलूआ, [श्रा.वि./१२वृ.] ४२२ | छत्तोवाणह सत्थ [प्र.सा./४३५] २९१ चारित्तस्स विसोही, [चतु.प्र./७२] ३७२ | छन्नाई चउव्वीसं, [ द.वै.नि.२५२/ चिंतासंतावेहि अ, [उ.मा./२८४] ४१७ सं.प्र.श्रा.५४/प्र.सा.१००४] १२० चिंतिज्जइ कज्जाई, [ ]
| छप्पिअ जीवणिकाए, [सं.प्र.३/२८] ६२ चिंतित्तु जोगमखिलं, [पञ्च./३२६] ५५२ | छप्पुरिमा तिरिअकए, [प.व./२४२] ५०१ चिंतेउ तओ पच्छा, [प.व./२९१] ५२० । | छम्मासा आयरिओ, चिइ संति सत्तवीसा, [सामा.] ९१
[बृ.क.भा./२००१] ७५८ चिइवंदण थुइवुड्डी, [ पञ्चा.८/३२] ४५० । | छम्मासिअं छसु जयं, [आ.नि./७६४]४६७ चित्तं पि हु अणुअत्तइ, [हि.मा./२७४] ३५४ छलिएण वा पवज्जा- [प.व./५७२]४९१ चित्तबलिचित्तगंधेहिं, [पञ्चा.८/३०] ४५० छव्विहजयणाऽऽगारं, [प्र.सा./९२७] ७६ चित्तमेव हि संसारो [शा.स./५-३०] ४४ | छायइ अणुकुईए, [प्र.सा./५३५] ५७२ चित्तस्स अट्ठमिदिणे, [श्रा.वि./१२वृ.]४२८ | छिंदइ कहं तहा [ ]
३१५ चिन्तासच्छ्रुत्यनुष्ठान- [ ]
| छिन्नाछिन्नवनपत्र- [यो.शा.३/१०२] १९३ चुणारुहाणं जिणपुंगवाण, [ ] २३६ | छिन्निदिया नपुंसा, [सं.प्र.श्रा./४६] ११९ चेइअ पडिम पइट्ठा, [श्रा.वि./१५] ४४१
[ज] चेइअदव्वं गित्तु, [श्रा.दि./१३२] २९५ | जं अणुदत्तो अ पुणो, [बृ.वं.भा./२२] ३१७ चेइअदव्वं साहारणं च,
जं अन्नाणी कम्मं, [प.व./५६४] ५१० [सं.प्र.दे./१०७] २९४ | जं अब्भसेइ जीवो, [ ] चेइअदव्वविणासे, [सं.प्र.दे./१०५] २९४ | जं आरुग्गमुदग्ग- [सं.प्र.श्रा./१२] ११३ चेइअदव्वविणासे, [सं.प्र.दे./१०६] २९४ | जं इंदियसयणाई, [सं.प्र.श्रा./९८] १४४ चेइहरेणं केइ, [चे.म.भा./१४३] २४४ | जं किंचि दुरालोइअ- [ य.दि./२३१] ५५४ चोइए चेइआणं,
जं कुणइ भावसल्लं, [पञ्चा.१५/३८] ४३९ [पं.क.भा./१५६९] २९४ जं च उद्दिट्टकडं [नि.चू.] १५९ चौरश्चौरापको मन्त्री, [नी.शा.] १८० जं च जीअलक्खणं तं, [अ.प./१५२]६७ [छ]
जं च सरीरं सुद्धं, [प्रा.सा.द्वा./१९] ७६२ छंदेणऽणुजाणामि [आ.नि./१२३८] ३०१ जं चण्ण एवमाई, [ओ.नि./७२९] ५८२ छउमत्थो मूढमणो, [प्रा.सा.द्वा./१९] ७६१ | जं जं मणेण बद्धं, [प्रा.सा.द्वा./१९] ७६१ छक्कायदयावंतोऽवि, [ओ.नि./४४१]३३२ | जं जं वच्चइ जाइं, [सं.प्र.श्रा./२३] ११६
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