Book Title: Dharma Sangraha Part 2
Author(s): Chandanbalashreeji
Publisher: Bhadrankar Prakashan
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परिशिष्टम् [३] धर्मसंग्रहवृत्तिगतोद्धरणानामकाराद्यनुक्रमः ॥]
[८०९ उष्णेन तप्तो नैवोष्णं,
| एआई अकुव्वंतो, । [यो.शा.३/१५३वृ.] ७२४
[बृ.क.भा./४५४९] ३४६ उसिणोदगंति दंडुक्कालिअं
एआई परिहरंतो, [हि.मा./३४८] ३५३ [प्र.सा./८८१] १४१ | एआई भंते ! चत्तारि उसिणोदगमणुवत्ते, [पि.नि./१८] १४०
[प्रज्ञा.११/८६२] ६६७ उस्सक्कण अहिसक्कण,
एआओ अविसेसेण, [पञ्च./१६६२] ७६० [प.व./३०४] ५२७ एआओ दो वि [श्रा.वि./११वृ.] ४२० उस्सग्गेण पढमा, [ य.दि./९६] ५०९ एआओ भावणाओ, [पञ्च./१६६१] ७६० उस्सग्गेणं तु सड्ढो उ,
एआणि गारवट्ठा, [पञ्च./१६४८] ७५९ [श्रा.दि./२२६] ३६८ | एआणि नपुंसया दस, उस्सीसभायणाई, [ओ.नि./२३२] ६३९
[नि.चू./३६३६] ४७२ उस्सुत्तभासगाणं, [सं.स./२९] २९३ एआरिसेण गुरुणा, [प.व./१४] ४७४ उस्सुत्तमणुवइटुं, [प्रव.सा./१२२] ३०४ | एए उ अणाएसा, [ओ.नि./२७०] ५०४ [ऊ] एए ओमा वि [ ]
७४९ ऊणगअट्ठारसगं, [ प.क.बृ./२०६६] ५४६ | एए चेव दुवालस, [ओ.नि./६७०] ५७० ऊणगसयभावेणं, [आ.नि./१११८] ७०५ | एएणं बीएणं, [सं.प्र.देवा./१९८] २३८ ऊर्ध्वतिर्यगधोभेदैः, [द्वा.भा./६०] ६८६ | एएसि वयपमाणं, [प.व./५०] ४६७ ऊर्ध्वलोकस्तदुपरि, [द्वा.भा./६२] ६८६ | एएसिं तु पमाणं, [प्र.सा./६३०] ७५६ ऊर्ध्वलोकस्य मध्ये च,
एएसि तिथिआणं, [हि.मा./३१४] ३५९ [द्वा.भा./१०३] ६८९ एक उत्पद्यते जन्तु- [यो.शा.४/६८] ६८३ ऊसरदेसं दड्डिल्लयं च, [वि.भा./२७३४] ५७ एकत्रासत्यजं पापं, [यो.शा.२/६४वृ.] ३५१ [ऋ]
एकभक्ताशनान्नित्य- [स्क.पु.] १३० ऋजुभावाऽऽसेवनमिति [ध.बि./८०] ३७ एकमपि च जिनवचनात् ऋषभाद्यानां तु तथा, [षोड.८/३] २२९
[तत्त्वा .सं./२७] २११ [ए]
एकवस्त्रान्वितश्चार्द्ध- [नी.शा.] ३६६ एअगुणविप्पमुक्के, [पञ्च./१३१८] ७३७ | एकवस्त्रो न भुञ्जीत, [ ]
२२५ एअस्स उ लिंगाई, [ध.र./७८] ४८६ | एकशाटिकोत्तरासङ्गकरणं [ ] २४० एअं च अस्थि लक्खण- [उ.प./२००] ४८६ | एकाङ्गः शिरसो नामे, [ ] २३२ एअं च ण जुत्तिखमं, [उ.प./९५०] २१ | | एकारसीसु निस्संगो, [ ] ४५६ एअं पच्चक्खाणं, [ उत्त.५/२७.] ७५७ | एकाशनाऽऽचाम्लादि [ ] एअं परुप्परं नायराण, [हि.मा./३११]३५९ | एकाहारी दर्शनधारी [ ]
४२९ एअं भूमिमपत्तं, [पञ्च./६१९] ६५९ एकेन्द्रियादिजन्तूनां, [द्वा.भा./५६] ६८५ एआई अकुव्वंतो,
एक्कंमि उ पाउग्गं, [ओ.नि./७१७] ५७८ [बृ.क.भा./४५४९] ७०८ एक्कदुगतिगचउ- [प.व./४०१] ५६४
३२५
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