Book Title: Dharma Sangraha Part 2
Author(s): Chandanbalashreeji
Publisher: Bhadrankar Prakashan

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Page 378
________________ ८०८] [धर्मसंग्रहः उदीच्यानां बलिर्नाग- [द्वा.भा./६९] ६८७ | उमग्गदेसओ मग्ग [पञ्च./१६६१ ] ७६० उदुम्बरवटप्लक्ष- [यो.शा.३/४२] १२८ | उम्मायं च लभेज्जा, [प.व./५६८] ५१० उद्दिट्ठकडं पि सो भुंजे [नि.भा.] १५९ उम्मुक्कभूसणो सो, [वि.ह.चू.] २५१ उद्दिट्टकडं भत्तं, [पञ्चा.१०/३२] ४५५ उरूसूसहलंछण [आ.नि./१०९३] २७५ उद्देससमुद्देसे, [ आ.नि./१५३४] ३८९ उलूककाकमार्जार- [यो.शा.३/६७] १३० उद्देसिअंमि नवगं, [पि.नि./३९५वृ.] ५३२ | उवउंजिऊण पुट्वि, [प.व./२८७] ५१२ उद्धावणा पहावण, [व्य.भा./९६२] ३०२ | उवओगकरणकाले, [य.दि./९५] ५०८ उद्विजतेन रोगेभ्यो, उवगरणं वामे उरुगंमि, [यो.शा.३/१५३वृ.] ७२५ [ओ.नि.भा./३१७] ५६६ उपदेशं विनाप्यर्थकामौ [यो.बि./२२२]३३ | उवगरणगोअरा पुण, [प.व./२३१] ४९४ उपदेशः शुभो नित्यं, [शा.वा./७] १६ उवगरणसरीरेसुं, [प्र.सा./७२४] ७२० उपन्नकारणमि, [बृ.क.भा./४५४०] ७०८ उवगरणाइँ चउद्दस, [प्र.सा./५२८] ५७१ उपन्नकारणमि, [बृ.क.भा./४५४०] ३४६ | उवगरणाईआणं, [ओ.नि.भा./१५७] ४९८ उपन्नाणा जह नो उवगाराभावम्मि वि, 1 [व्य.भा.३/६/१२५] ७३३ [श्रा.प्र.३४८/पूजा.प.४/४४] २०८ उपसर्गप्रसङ्गेऽपि [यो.शा.१/४३] ६९४ उवणेउ मंगलं वो, [स.च.] २४७ उपादेयधियाऽत्यन्तं, [यो.दृ./२५] २३ | उवणेउ मंगलं वो, [ ] २४६ उपाध्याया दशाचार्यः, उवभोगपरिभोगवए [प्र.आ.सू.७] १२४ [म.स्मृ २/१४५] १४ उवयारो चउत्थेण [ ] ७४८ उपाध्याया दशाचार्यः, उवरि हेट्ठा य [ओ.नि.भा./२६४] ५५१ [म.स्मृ./२-१४५] ३५५ | उववासी सव्वोवहि- [य.दि./२८३] ५६९ उपानत्सहितोव्यग्र- [नी.शा.] ३६६ उवविसइ उवज्झाओ, [य.दि./१००] ५०९ उपायतो मोहनिन्देति [ध.बि./८५] ३९ उवसंपन्नो जं कारणं, [आ.नि/७२०]६५६ उपावृत्तस्य दोषेभ्यः, उवसंपया य तिविहा, [आ.नि./६९८ ] ६५२ 1 [ध.बि.३/१८टी.] १५५ उवसंपयाय(ए) कप्पो [पञ्च./९८६]६५२ उप्पन्न विगय मीसग, [प्र.सा./८९३ ]६६८ उवसमसम्मत्ताओ [वि.भा./५३१] ६० उप्पलपउमाई पुण, [बृ.क.भा./९७८] १३८ उवसमसम्मट्टिी [श.बृ.चू.] उभओ णहसंठाणा, [ओ.नि./२८पू.] ५६६ उवसमसेढिगयस्स उ, [वि.भा./२७३५]५७ उभयनिबन्धनभाव- [ध.बि./सू.९५] ४ उवसामगो अ खवगो, [प्र.सा./७२६ ] ७२१ उभयनिबन्धनभाव- [ध.बि./९५] ४२ उवहाणीकयबाहू, [ य.दि./३६०] ६४२ उभयन्नू वि अ [ उप.प./८५२] ४७३ उवहिमि पच्चूसे [नि.चूर्णि] ५०५ उभयमुहं रासिदुगं, [ प.व./४०३] ५६४ उव्वत्त दार संथार, [प्र.सा./६२९] ७५६ उभयहितमेतदिति [ध.बि./४-३१] ४७७ उव्वत्तइ परिअत्तइ, [पञ्च./१६२५] ७५६ उमग्गदेसओ णिण्हवोऽसि [ ] उव्वत्तणपरिअत्तण- [य.दि./३६९] ६४३ D:\d-p.pm513rd proof

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