Book Title: Dharma Sangraha Part 2
Author(s): Chandanbalashreeji
Publisher: Bhadrankar Prakashan
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८१४]
[धर्मसंग्रहः क्षुतृहिमान्युष्ण- [ ]
३८ | गंधा संघो चिइ संति, क्षुत्पिपासा शीतमुष्णं,
[प्रा.सा./द्वा.१९] ७६१ । [यो.शा.३/१५३७.] ७२६ | गंधाइड्डिअमहुअर- [ ]
२४५ क्षुधातः शक्तिभार
गंभीरिमगुणनिहिणो, [ य.दि./२०] ३७५ [यो.शा.३/१५३वृ.] ७२४ गच्छगओ अणुओगी, [उ.मा./३८८] ७०६ [ख]
गच्छपरिरक्खणट्ठा [बृ.क.भा./४५४२] ७०७ खंडणपीसणमाईण [श्रा.वि./१२व.] ४२३ | गच्छा विणिक्खमित्ता, खंडणपीसणरंधण- [श्रा.वि./१२वृ.] ४२३
[पञ्चा.१८/७] ६९२ खंती मद्दव अज्जव, [प्र.सा./५५४] ६७५ | गच्छे अत्थं सुत्तं, [य.दि./१०४] ७५० खंती मुत्ती अज्जव, [प्र.सा./५५४वृ.] ६७६ | गच्छे चिअ निम्माओ, [पञ्चा.१८/५] ६९२ खंधकरणी उ चउहत्थ [प्र.सा/५३८] ५७३ | गच्छे पडिबद्धाणं, [प्र.सा./६१६] ७७६ खइगाइ सासणजुअं, [प्र.सा./९४७] ६२ | गणचिंतगस्स सत्ता, खज्जूरदक्खदाडिम
[बृ.क.भा./३९८८] ५८६ [श्रा.वि./१२वृ.] ४२३ | गणणिक्खेवेत्तरिओ, [पञ्च./१३७९] ७६९ खण्डिते सन्धिते [ पूजा.१७] २३९ | गणहरकयमंगगयं, [ ]
६२९ खमणिज्जो भे [बृ.वं.भा./१७] ३१७ | गणिउज्झायपवित्ती, [पञ्च./१३७८ ] ७६८ खरिआ तिरिक्खजोणी, [ओ.नि./७६७]१२ | गणिमं जाईफल- [सं.प्र.श्रा./५३] १८६ खलिअंमि चोइओ, [हि.मा./३०२] ३५८ | गन्थिभेदे नात्यन्त- [ध.बि./१२७] ४८ खविअं नीआगोअं, [श्रा.दि./१०२] २९८ | गन्धधूपाक्षतैः [ पूजा.१४]
२३९ खाइज्ज पिट्ठिमंसं, [हि.मा./२९६] ३५८ | गन्धैर्माल्यैर्विनिर्यद्- [ ]
२०८ खामित्ता विणएणं, [5.वं.भा./२९] ३१८ | गब्भगए जं जणणी, खामेमि सव्वजीवे, [वं.सू./४९] ४१६
[आ.नि./१०९६] २७६ खामेमि सव्वजीवे, [प्रा.सा.द्वा./१९] ७६२ | गब्भगए जं जणणी, खित्तंमि जत्थ जो [य.दि./१७१] ५१८
[आ.नि./११००] २७६ खित्ते खले अरणे, [सं.प्र.श्रा.३३] ११७ | गब्भाओ नीहरंतस्स, [र.सं./३०१] ४१७ खीणे दंसणमोहे, [ध.सं.णी/८०१] ५९ गमणागमणविहारे [आ.नि./१५३३] ३८८ खीरं दहिणवणीयं [पञ्च./३७१] ३३६ | गमणे दसमं तु भवे, [प.च.] २४९ खीरदहिअविअडाणं [प्र.सा./२२२] ३३८ | गलमच्छभवविमोअ-[ उ.प./१८८] २७ खेलं केलि कलिं [प्र.सा./४३३] २९० | गहणादुवरि पयत्ता [पञ्चा.१/३५] खोडणपमज्जवेलासु, [प.व./२५५] ५०३ | गहिऊण य मुक्काई, [ग]
[प्रा.सा.द्वा./१९] ७६२ गंडी कच्छवि मुट्ठी, [प्र.सा./६६४] ५८४ गामागरनगराणां, [सं.प्र.श्रा.३४] ११७ गंतूण वसहिदारे [य.दि./२७७] ५६७ | गारवतिगं च वयणे [प.कु./४] ३०० गंधव्वनट्टवाइअ- [चे.वं.म./२०५] २३१ | गारविए काहीए, [बृ.क./१७०३] ५२१
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