Book Title: Daivat Bramhanam tatha Shadvinshat Bramhanam
Author(s): Samveda, Sayanacharya, Jivanand Vidyasagar
Publisher: Jivanand Vidyasagar
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घटिश ब्रामगे।
सतमात् पुरुषा दनायतनो भवति यमेतेनाभिचरन्ति समानमितरच्छे नेन ॥ ८ ॥
इति षड्विंशब्राह्मणे टतोयप्रपाठके नवमखण्डः ।
अथैष सन्दएशोभिचरन्यजेत यई दुरादानएसन्दएशे तदादत्ते यद हो ही स्तोभौ स ह यथाह दुरादानसन्दर्श नानु हाया ददौतेव मैवैन मेतेनादत्ते निवृतएस्तोमए सम्पद्यते तहतों छन्दोव बजो पै त्रिवत्पशवो रहती वजेणेवास्थ पशूने हत्यपशुर्भवति वैयवं भवति व्यश्वमवैनं करीति परिष्टुश्चैड़ भवति पर्ये वैनं वृश्चति वार्षाहरे पवमानमुखे भवतः काशौ तोपगवे नानदएसाम फराणि सामानि सम्भरन्ति स्मृत्यै निःसप्तदशस्तन क्रूरः समानमितरच्छ नेन ॥ १० ॥
इति षड्विंशवाहाणे कृतीयप्रपाठके दशमखण्डः ।
अथेष वजोभिचरन् यजेत वजेणैवाम्म वच्च प्रहरति स्तत्यै सर्वः पञ्चदशो भवति वजो वै पञ्चदशस्तमेवास्मै वज प्रहरति स्तुत्वा उकथ्यः षोड़शिमान् भवति पशवो वा उकधानि वजः षोडशो वजे णेवासमै वजौं प्रहरति स्तुत्यै तस्व महानामाः षोडशि साम भवति वजो बै महानायी वजः घोड़शौ वजे णेवास्न वज्र प्रहरति स्तुत्यै समानामतरत्पूर्वेण .. १. इति षड्विंशब्राह्मणे तृतीयप्रपाठके एकादशखण्डः ।
अतिरात्रश्चतुर्विशं प्रायणीय महरभिजिचयः स्वरमा मानो दिवाकोटं महस्त्रयः खरसामानी विश्वजिन्महाव्रत शातिरावश्च विश्वेदेवाः समासत सोमन राजा राह
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