Book Title: Chaturvinshati Jin Stuti
Author(s): Vinaysagar
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 5
________________ विश्व के सभी सभ्य समाजों में अपने से अधिक गुणवान. विद्यावान् . वयोवृद्ध के प्रति आदर एवं भक्तिभाव रहा करता है, और उनकी अविद्यमानता में-तिरोहित हो जाने पर उनके स्मारक के रूप में मंदिर,मूर्ति-पादुका, चित्र आदि का निर्माण होता है जिससे शिल्प स्थापत्य मूर्तिकला चित्रकला का विकाश एवं उत्तरोत्तर अभिवृद्धि व उन्नति हुई, और उनके गुणानुवाद के रूप में चरित काव्यों, भक्ति साहित्य-स्तुति स्तोत्रादि विशाल साहित्य का निर्माण हुआ। कोई भी वस्तु उत्पत्ति के समय साधारण रूप में होती है पर विशिष्ट व्यक्तियों के हाथों में जाकर कलापूर्ण एवं असाधारण रूप में परिवर्तित हो माती है । मंदिर मूर्तियों के पीछे श्रीमानों एवं कुशल कलाकारों के सहयोग से अरबों खरबों द्रव्य या असंख्य धनराशि का व्यय हुआ है। समय समय के राज्य विप्लव एवं प्राकृतिक प्रलयों से ध्वस्त होते होते जो सामग्री बच पाई है या खुदाइ से प्राप्त हुई है, उससे उपर्युक्त कथन पूर्णरूपेण समर्थित है। इसी प्रकार असाधारण प्रतिभासंपन विद्वानों के भक्तिसित हृदयों से जो उद्गार निकले वे साहित्य की छटा से पूर्ण. विविध छंद अलंकारों से सजित, श्रृंगार. दर्शन. अध्यात्म से सराबोर. विविधरली की असंख्य उदात्त रचनाओं के रूप से आज भी सुरक्षित है। स्तोत्र साहित्य की प्राचीनता एवं जैनेतर स्तोत्र भारतीय साहित्य में सब से प्राचीन अन्य वेद माने जाते हैं, उनके अवलोकन से तत्कालीन लोक मानस के मलिभाव का मुकाव, इन्द्र. वरुण.

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