Book Title: Chaturvinshati Jin Stuti
Author(s): Vinaysagar
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 12
________________ के चार पचों में से प्रथम में विविधित किसी एक तीर्यकर की स्तुति, दूसरे में सर्वजिनों की स्तुति, तृतीय में जिनप्रवचन और चौथे में शासन सेवक देवों का स्मरण किया गया है। ऐसी यमकालंकार चतुर्विशतिकामों में सर्व प्रथम रचना आचार्य बप्पभट्टसूरिजी की है, इसके पश्चात शोभनमुनिजी की सर्वश्रेष्ठ लेने से बहुत ही प्रसिद्ध है। इसकी प्रेरणा से रचित इनके अनंतर मेरुविजयकी जिनानंदस्तुति चतुर्विशतिका, ४-यशोविजय उपाध्याय की ऐन्द्रस्तुति चतुर्विशतिका ५-हेमविजय रचित (अप्रकाशित) और एक अज्ञात कर्तृक (दिशसुख मरिवल-श्राविपद वाली तीर्थकरों की ही प्राप्त) प्रकाशित है। अभी तक यमकालंकार ६६ पद्य वाली ५ रचनायें ही ज्ञात श्री * प्रस्तुत कृति के प्रकाशन द्वारा इसकी संख्या में अमिवृद्धि होती है। स्तुतिकार ने स्वोपज्ञ वृत्ति द्वारा भावों को स्पष्ट कर दिया है। इसकी एक मात्र प्रति-मुनिविनयसागरजी को प्राप्त हुइ बी अतः इसके प्रकाशन के लिये मुनि श्री को धन्यवाद देते हुवे भूमिका समाप्त की जाती है। अगरचन्द नाहटा आषाढ़ पूर्णिमा .२००४ बीकानेर उस पर अधिकार असाधारण सिद्ध होता है। *-पय २७ से ३६ की अन्य यमकालंकारमयी स्तुति चतुर्विशतिकाओं के लिये देखें ऐन्द्र स्तुति की प्रस्तावना । --प्रति के लेखक श्रीवल्लभ स्वयं बडे विद्वान अन्धकार थे, आपकी पर नाथ स्तुति भी विद्वतापूर्ण कृति है, जिसके प्रकाशन का भी मुनि विनयसागरजी विचार कर रहे हैं। श्रीवल्लभ के अन्य ग्रंथो के संबंध में जैन सत्यप्रकाशवर्ष ७ अंक में प्रकाशित मेरा लेख देखना चाहिये।

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