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(९) १-इरियावही मिच्छामि दुक्कडं विचार गर्भित स्तवन गा. ४ (पादि
चड़वीसमा जिनराय.) २-पार्व स्तवन गा० ५ (आदि-पुरसोदय प्रधान ध्यान तुमारडो.) ३ नेमी गीत गा. ६ ( -सामखिया सुन्दर देहा.) ४ आदीश्वर गीत गा. ६ (,-नयर विनीता-सजीयउजी.) ५-नेमि राजुल गीत गा.( -जोड २ बहिनी हियइ विचारी नइ.) ६-वैरागी गीत गा. ६ ( -चेतन चेतर जीड चित्त मइ.) ७ दसवैकालिक गीत गा.६( -चतुर्विधसंघ सुणउ हितकारक.) ५-जिनचन्द्रसूरि गीत गा.५ ( , सुणउ रे सुहागण को कहइ.) t- , , .( ,-अमृत वचनपूज्य देखणा० ) १. , , .६(,-तुम्हारे वांदिवउ मुझ मन धायउ०) ११- , , .५ ( ,-श्रीखरतरगच्छ गुणनिलउ.) १२-जिनसिंहसूरिजी गीत गा. ३ (आदि-जिनसिंघसूरि जगमोहण.) १३- , , ५(,-रंगलागडजी मोहि जिनसिंघसूरि०) स्तुति चतुर्विशतिका की प्रस्तुत शैली की अन्य रचनायें
प्रस्तुत 'स्तुति चतुर्विशतिका' यमकालंकार विभूषित विद्वतापूर्ण कृति है, इसमें द्वितीय चरण की पुनरावृत्ति चतुर्थपाद में मिनार्थ के रूप में की गई है, यमकालंकार का इसमें अखंड साम्राज्य है, एवं शार्दूल विक्रीडित-स्रग्धरा आदि १३ छंदों मेंxस्तुति की गई है। देववंदन भाष्य के अनुसार प्रत्येक स्तुति -*नं०१४-१५में प्रथम तृतीयपाद समानता रूप एव नं० २३ वी स्तुति
में मिन्न प्रकार का यमकालंकार भी है। -शार्दूल विक्रीडित में नं० १.१२. १६.२२, उपेंद्रवज्रा २. ६, शालिनी
३, १६, द्रत विलंपित ४. १०. १४, स्रग्विणी ५, वसंततिलका , मालिनी ७.१७, मंदाक्रांता ८, हरिणी ११, पृथ्वी १३.२०, अनुष्टुन् १५, शिखरिणी १८. २१. मगधरा २३. २४, वीं जिन स्तुतियें हैं। इससे स्तुतिकार का संस्कृत भाषा छंद एवं अलंकारों की विद्वता और