Book Title: Charitra Chakravarti Author(s): Sumeruchand Diwakar Shastri Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha View full book textPage 8
________________ चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ पर कतिपय अभिमत-२ श्रीमूलचन्द किसनचन्दकापड़िया, संपादकजैनमित्र - श्री दिवाकरजी ने यह महान् चारित्र ऐसी खोज व ऐसे ढंग से लिखा है कि जो जैनअजैन सब महानुभावों के हस्त में रखने योग्य है। वर्षों की खोज व बड़ी छानबीन के साथ ही यह चारित्र दिवाकरजी ने लिखा है, जो दिगम्बर जैन समाज के लिये क भूषण रूप है। ब्र. चन्दाबाईजीजैन (महिलाआश्रम, आरा) श्री पं. सुमेरुचंद्रजी दिवाकर लब्ध प्रतिष्ठित लेखक और चिन्तनशील विद्वान हैं। आपने प्रस्तुत ग्रंथ में चारित्र चक्रवर्ती पूज्य आचार्य शांतिसागरजी महाराज की जीवनी बड़ी ही शोधबीन के साथ प्रस्तुत की है। प्रसंग पर धर्मचर्चायें भी प्रस्तुत की गई हैं, जिससे ग्रंथ की उपयोगिता में चार चाँद लग गये हैं। जीवनी लिखने का ढंग भी बहुत ही सुन्दर और रोचक है। पाठक पढ़ते समय बहता चला जाता है। पूज्य आचार्य महाराज के निकट सम्पर्क में रहकर उनके जीवन की अनेक शिक्षाप्रद घटनाओं का संकलन भी लेखक ने प्रामाणिकता और ईमानदारी के साथ किया है। श्रीलक्ष्मीचंदजैन (भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली) चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ के संबंध में आपने जो परिश्रम किया है और पूज्य आचार्य शांतिसागरजी महाराज के जीवन चरित्र के माध्यम से जैन धर्म के संबंध में सैद्धांतिक प्रकाश डाला है, वह वास्तव में बहुमूल्य है। आपने उनके पवित्र जीवन के अनुरूप ग्रंथ प्रकाशित करके समाज की लाज बचाली और सार्वभौम प्रणति को अभिव्यक्ति दी। राष्ट्रकवि मैथिलीशरणगुप्त ऐसे ग्रंथ की आलोचना क्या! शिरोधार्य होते हैं। इनसे कुछ शिक्षा ली जाय तो बड़ी बात है। हाँ, उसके लिये आपने जो प्रयास किया है, उसकी जितनी बड़ाई की जाय थोड़ी है। आपकी जो मुझपर कृपा रहती है उसके लिए चिरकृतज्ञ हूँ। श्रीमा. गोलवेलकर (राष्ट्रीय स्वयंसेवकसंघ) - मैं कुछ लिखने का गुण अपने अंदर नहीं पाता। मैं तो केवल संतो का पूजारी मात्र होने की इच्छा रखता हूँ और इसी दृष्टि से मैं श्री १०८ शांतिसागर महाराज के पुण्य चरणों में नम्रतापूर्वक प्रणाम करता हूँ। श्रीहनारीप्रसाद द्विवेदीचारित्र चक्रवर्ती देख गया हूँ । पुस्तक अच्छी है, धन्यवाद। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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