Book Title: Charitra Chakravarti
Author(s): Sumeruchand Diwakar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 6
________________ - चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ पर कतिपरा अभिमत-१ आचार्यदेशभूषणजीमहाराज आपने आचार्य श्री का जीवन चरित्र समाज के सामने प्रस्तुत कर अपूर्व पुण्य और यश को प्राप्त किया है। महाराजजी के सन्निकट में रहकर जो पुण्य और यश प्राप्त किया है, अन्य किसी संसारी प्राणी को दुर्लभ है। आचार्य महराज ने इस अखंड भारत में कोने-कोने पर विहार कर प्राणियों को उनका कल्याणकारी मार्ग बताया है और जैनधर्म की प्राणप्रण से रक्षा की है। आचार्य महाराज समस्त संसार की महान् विभूति हैं। आपने उक्त महान ग्रंथ लिखकर जो गुरूभक्ति का प्रसार किया है, हमारा आशीर्वाद सदैव आपके साथ है। पूज्यवर्द्धमानसागरजी ___आपने बहुत परिश्रम से चारित्र चक्रवर्ती १०८ आचार्य शांतिसागरजी महाराज का जीवन चरित्र लिखकर प्रकाशित किया है। आपने यह अत्यंत चिरस्मरणीय कार्य किया है। यह ग्रंथ अजरामर है। आपको इसके लिए आशीर्वाद। पूज्यसमंतभद्रजीमहाराज __आचार्य श्री का चारित्र लिखकर आपने बहुत बड़ा कार्य किया है, इस हेतु आपको अनेक शुभाशीर्वाद पूर्वक धन्यवाद। आपका धर्मोत्साह बढता रहे, यह मंगलकामना। श्रीलक्ष्मीसेनजीभट्टारक, कोल्हापुर चारित्र चक्रवर्ती लोकोत्तर महात्मा पूज्य आचार्य श्री का चारित्र ग्रंथ ब्रह्मनिष्ठ विद्वान आपकी विद्वतता का सार है, जो जगन्मान्य है ही। ब्र. सूरजमलजी (आचार्य वीरसागरजी के समीपसे) ___ वास्तव में चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ में आपने बहुत ही परिश्रम किया। इतना बड़ा ग्रंथ, जिसमें पूज्य गुरूदेव का चारित्र पूर्ण रूप से है, बिना पांडित्य के ऐसी अमोलक चीज नहीं बन सकती। पूज्य वीरसागर जी महाराज आपको आशीर्वाद देते हुए ग्रंथ को बनाने के हर्षोपलक्ष्य में आपके परिश्रम के लिए आपकी प्रशंसा करते हैं। रावराजा सरसेठ हुकुमचंदजी, इन्दौर आपका लिखा हुआ चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ हमने आद्योपान्त पढा है। वह बहुत सुन्दर है और हमको बहुत अच्छा लगा। आपके सद्प्रयत्न की हम हृदय से सराहना करते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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