Book Title: Charitra Chakravarti Author(s): Sumeruchand Diwakar Shastri Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha View full book textPage 5
________________ ज्ञानं पूज्यं तपोहीनं, ज्ञानहीनं तपोऽर्हितम् । यत्र द्वयं स देवः स्याद्, द्विहीनो गणपूरणः॥ अर्थ - तप न हो और मात्र (विशिष्ट) ज्ञान ही हो तो वह भी पूज्य है। (विशिष्ट) ज्ञान न हो, केवल तप या चारित्र ही हो, तो वह भी पूज्य है। और जिस व्यक्ति में (विशिष्ट) ज्ञान व तप दोनों हों, उसे तो साक्षात् देव ही समझना चाहिये। (यशःस्तिलकचंपूमहाकाव्य) जिनकाज्ञानवतपोबल, दोनों ही, परिक्षाप्रघानियों तक कोचरणों में नवां गया, उन चारित्र चक्रवर्ती आचार्य शांतिसागरजी महराज के श्री चरणों में शत-शत वंदन,शत-शतवंदन। वंदनावनत * श्री भारतवर्षीय दिगंबर जैन महासभा चैरिटेबल ट्रस्ट श्री भारतवर्षीय दिगंबर जैन (धर्म संरक्षिणी) महासभा श्री भारतवर्षीय दिगंबर जैन (श्रुत संवर्द्धिनी) महासभा श्री भारतवर्षीय दिगंबर जैन (तीर्थ संरक्षिणी) महासभा श्री भारतवर्षीय दिगंबर जैन (श्रुत संवर्द्धिनी) महासभा, परिक्षालय बोर्ड जैन गजट परिवार प्राचीन तीर्थ जीर्णोद्धार परिवार श्रुतसंवर्धिनी परिवार (साप्ताहिक) (मासिक) (मासिक) महिलादर्श परिवार (मासिक) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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