Book Title: Charitra Chakravarti
Author(s): Sumeruchand Diwakar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 7
________________ आचार्य श्री के आशीर्वचन महासभा के लिए ര මග महासभा की स्वर्ण जंयती महामहोत्सव के अवसर पर मथुरा (उ.प्र.), सन् १९५१ दिगम्बर जैन धर्म संरक्षिणी महासभा को हमारा आशीर्वाद है, क्योंकि वह धर्म संकट में नहीं डिगी है। आगे भी यह धर्म से नहीं डिगेगी ऐसी हमें आशा है। - चारित्र चक्रवर्ती (संस्करण १६६७), प्रभावना, पृष्ठ २३६ २६ अगस्त १९५५, सल्लेखना के १३ वें दिन, कुंथलगिरि (महा.) महासभा सदैव की तरह धर्म रक्षा' में सदा कटिबद्ध रहे, धर्म को कभी न भूलें और धर्म के विरूद्ध कोई भी कार्य न करें । आचार्य शांतिसागर सल्लेखना विशेषांक, जैन गजट, सन् १९५५ १. धर्म - रक्षा शब्द से आचार्य श्री का तात्पर्य - सज्जातित्व संरक्षण (स्व-स्व जातियों की पंचायतों व पंचायतों के प्रावधानों के प्रति प्रत्येक सदस्य की अड़िग आस्था व सामाजिक स्तर पर एक जुटता ), धर्म संरक्षण (जैन पंचायत अर्थात धार्मिक संगठन महासभा के प्रावधानों के प्रति भी घोर आस्था व प्रत्येक धार्मिक मामलों में एकजुटता ), विजातीय विवाह, विधवा विवाह व बाल विवाह निषेध, शुद्र जल का त्याग, यज्ञोपवित धारण आदि-आदि। Jain Education International For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org

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