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पकं ॥ ध्यान रूप अनुपम उपम, नमो सिद्ध निरंजनं ॥१॥ गगन मंडल मुक्ति पञ, सर्व उर्द्ध निवासनं॥ ज्ञान ज्योति अनंत राजे, ॥ नमो० ॥ २ ॥ अज्ञान निद्रा विगत वेदन, दलित मोह मेराउखं ॥ नामगोत्र निरंतराय, नमो० ॥३॥ विकट क्रोधा मान योधा, माया लोभ विसर्जन ॥रागद्वेष विमनोत अंकुर, ॥ नमो०॥४॥ विमल केवल ज्ञान लोचन, ध्यान शुक्ल समोरितं ॥ योगनामिति गम्यरूपं. ॥नमो॥५॥ योगमुडा सम समुद्रा, करी पल्यंकासनं ॥ योगनामिति गम्यरूपं, नमो० ॥६॥ जगत जनके दास दासी, तास आश निरासनं ॥ योगीनामिति गम्यरूपं ॥ नमो० ॥ ७॥ समय समकित दृष्टि जनकी, सोय योगी अयोगिकं ॥ देखिता मिलिन होवेनिमो० ॥८॥ सिद्ध तीर्थ अर्थ सिद्धा, भेद पंच दशादिकं॥ सर्व कर्म विमुक्ति चेतन, निमो०॥९॥ चंद्र सूर्य दीप मणीकी, ज्योति तेने ओलंगीकनं ॥ तज्यो तिथी कोई अपर ज्योति, ॥ नमो० ॥१०॥ एक माहे अनेक राजे, नेक मांहि एककं ।। एक नेककी नहि संख्या, नमो० ॥
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