Book Title: Bina Nayan ki Bat Author(s): Chandraprabhsagar Publisher: Jityasha Foundation View full book textPage 9
________________ रहती है, या उस पार । अगर अध्यात्म को आत्मसात करना चाहते हो तो या तो इस पार रहो, या फिर उस पार निकल जाओ । अधर में लटका हुआ अध्यात्म कोई मायने नहीं रखता। अधर में लटकती हुई पैंडुलम, सार्थकता नहीं रखती । या तो इस पार, या फिर उस पार । जीवन को एक मार्ग पर ले चलो। या तो पूरी तरह से सेवन करो या फिर पूरी तरह से त्याग डालो। ये बीच का मार्ग कभी अपनाने की कोशिश मत करना । आधा भोगेंगे, आधा त्यागेंगे, वह व्रत कभी व्रत नहीं होगा। वो विरति कभी विरति नहीं हो पाएगी। या तो पूरी तरह से उससे छूट चलो, या फिर पूरी तरह से उसका सेवन करो ना.... कौन मना करता है आपको। दुनिया में कोई आपको परहेज रखने के लिए नहीं कहेगा । अगर पाना चाहते हो, अगर सच में कुछ होना चाहते हो, राजचन्द्र का जीवन स्वयं में घटित करना चाहते हो, अपने आपको आत्मसात करना चाहते हो, तो मैं चाहूंगा कि आप लोग अपने आपको मुझे सौंप दें। अगर पूरी तरह सौंप नहीं सकते, तो कम से कम मेरे हृदय तक अपने आपको पहुंचने दें। अगर मेरे हृदय में नहीं आ सकते, कोई दिक्कत नहीं, अपने हृदय तक तो मुझे ले जा सकते हो । अगर आपने, अपने मन में अपनी आत्मा में मुझे भी प्रवेश दे दिया तो भी काफी है । मैं भीतर एक कोहराम मचाऊंगा। मैं भीतर की लंका में आग लगाऊंगा और मैं चाहता हूं कि यह चैतन्य स्वरूप की आग सारे जहान में फैल जाए। जिसके भीतर भी रावण है, उस रावण को जला डाले और भीतर का सोया राम जग जाये। कचरा जल जाये, सोना कुंदन हो जाये। आदमी के भीतर जो दोगलापन है, जो भटकाव है, मैं उसे खत्म कर देना चाहता हूं। मैं आप लोगों को आग देना चाहता हूं, केवल चिराग नहीं ताकि आग आपके भीतर के कषाय को, राग-द्वेष के तन्तुओं को जलाकर राख कर सके। पूरी तरह से नाश न कर सके, तो कम-से-कम मैं राजचन्द्र की जो निष्पत्तियां आप लोगों को देना चाहता हूं, उन के द्वारा कम-से-कम इतना तो सिद्ध कर दो कि मेरे भीतर भी एक हनुमान सोया है, जो चाहे तो तहत - नहस मचा सकता है। लंका को जला सकता है । राजचन्द्र कोई मामूली आदमी नहीं है, असाधारण ! फिर भी साधारण । साधारण इसलिए क्योंकि वह आपसे पैदा हुए हैं। रामचन्द्र की तरह, कृष्ण की तरह भगवान का अवतार होकर नहीं आए हैं । तीर्थंकर की तरह जन्मजात अवधिज्ञान लेकर पैदा नहीं हुए हैं । वह तो साधक हैं, जो अपनी भुजा के बल से, अपने आत्मबल से कुछ प्राप्त करेंगे तो करेंगे। किसी तीर्थंकर गोत्र को प्राप्त करके किसी और की मेहरबानी से अवधि ज्ञान भी मिलता है, वो भी उधार खाता है। यह तो नकदानकद माल है । बिल्कुल ताजी - ताजी मिठाई है । बासी माल बिना नयन की बात : श्री चन्द्रप्रभ / ४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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