Book Title: Bina Nayan ki Bat
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 16
________________ है। भीतर के मनुष्य के जगने पर ही समझें कि भीतर के सागर में डूबा हुआ परमात्मा का मन्दिर उभरा। ___ भीतर के मनुष्य को, भीतर के मसीहा को जगाने के लिए ही तो घंटा बजाते हैं। क्या आप मन्दिर में जाकर घंटियां इसलिए बजाते हैं कि भगवान कहीं सोया हुआ हो, जो उसे सुनकर जग जाए? (हंसी) वास्तव में ये घंटनाद परमात्मा को जगाने के लिए नहीं किया जाता, बल्कि अपने-आपको जगाने के लिए किया जाता है। जोर से घंटा इसलिए बजाया जाता है ताकि हमारे अंदर के सारे स्नायुतंतु क्षणभर के लिए जग जाएं। मंदिर में परमात्मा नहीं है, मंदिर में तुम खुद हो । तुम मंदिर में हो तो परमात्मा मंदिर में है। यदि मंदिर में जाकर भी तुम संसार के बारे में सोचते हो, तो मंदिर में भी परमात्मा नहीं, संसार ही है। मंदिर में भी बाजार ही है, और यदि बाजार में जाकर, किसी शहर के चौराहे पर भी परमात्मा को याद करते हैं तो वह शहर का चौराहा नहीं, परमात्मा का मंदिर है। पहचानें हम अपने भीतर के भगवान को । भीतर का भगवान कैसे जानें, पहचानें इसी के लिए सारे साधन और साधना है। बेहतर होगा इसके लिए हम जगाएं पहले भीतर में सोये मनुष्य को। इधर हमारे भीतर का मनुष्य जग जाए, सोया हुआ इंसान जग जाए। यदि साधना की शुरुआत करनी है तो मैं पहला सूत्र देना चाहता हूं राजचन्द्र की ओर से ताकि भीतर का वह सोया हुआ इन्सान जग जाए। तभी तो क्षत्रियत्व जगेगा, हमारा पौरुष प्रकट होगा वह मनुष्य जगेगा। अभी तो जब तक भीतर का मनुष्य ही मरा-मरा सा पड़ा है, तब तक चेतना में कोई तरंग नहीं हो सकती। चेतना तुम में रहेगी, तुम चेतना में नहीं रहोगे। अफलातून ने मनुष्य की पहली परिभाषा दी है कि मनुष्य बिना पंखों का, दो पांवों से चलने वाला जानवर है। अफलातन ने किसी हिसाब से ठीक कहा होगा। किंतु डायोजनीज अफलातून के पास गया, एक मुर्गा लेकर। उसने अफलातून से कहा कि यदि इंसान बिना पंखों का दोपाया जानवर है, तो लो मैंने इस मुर्गे के पंख काट दिये। अब सिद्ध करो कि क्या यह मुर्गा इंसान हो गया? नहीं! वह इंसान नहीं हुआ। जानवर तो जानवर ही रहेगा, पर अभी तो इंसान भी जानवर ही बना हुआ है। जिस दिन मनुष्य के भीतर का मनुष्य पैदा हो जाएगा, उस दिन उसके भीतर का भगवान भी चला आएगा। पर जब तक भीतर से जानवर बने हुए हो तब तक बिना पंखों के दो पाया जानवर ही कहलाओगे। तब प्राण तो होंगे पर पशु-से प्राण । बजी घंटियां मन-मन्दिर की / ११ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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