Book Title: Bina Nayan ki Bat
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 18
________________ उसे देखने का प्रयास करना है। भीतर के मानस को साफ करना है। स्वयं की प्रेक्षा-अनुप्रेक्षा करो, विपश्यना करो और देखो कि हमारा वास्तविक स्वरूप कैसा है? अगर आन्तरिक धुलाई से वह स्वच्छ, साफ हो सकता है, निर्मल हो सकता है, तो हम उसको निर्मल और पवित्र बनाने का प्रयास करें। यदि ऐसा होता है तो आगे की यात्रा बहुत सुखद और सुलभ हो जाएगी। सागर में मंदिर उभरते दिखाई देंगे। भीतर के भगवान की स्वतः पहचान होगी। शुद्ध चित्त के साथ अपने वर्तमान के प्रति सजग रहना ही धर्म का वास्तविक अभ्यास है, समाधि है। (घंटा बजने की आवाज) मंदिर में घंटिया बज रही हैं। घंटियां बजती रहे और सोया मनुष्य जगता रहे, इसी में घंटनाद की सार्थकता है। मन-मंदिर में बजती घंटियां तुम्हें भीतर बुला रही हैं। आज हमने कुछ प्रवेश किया है, कल और प्रवेश करें, तब तक के लिए मौन होने की अनुमति दीजिये। धन्यवाद। बजी घंटियां मन-मन्दिर की / १३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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