Book Title: Bina Nayan ki Bat
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 52
________________ चलता है तो इसका अर्थ है मां ने उससे सही वक्त पर अपनी अंगुली नहीं छुड़ाई । उसे स्वयं बिना किसी सहारे के चलने की प्रेरणा न दी । परिणाम स्वरूप बच्चे को अंगुली पकड़ कर चलने की आदत बन गई है, जो अब छूट नहीं सकती। ऐसा बच्चा कभी भी आत्म-निर्भर नहीं हो सकता। इसलिए गुरु को अपनी, सहारा देने की सीमा का बोध रखना चाहिए। बड़े हल्के से अपनी अंगुली पकड़ानी चाहिए और जैसे ही शिष्य चलना सीख जाए, उसकी शिक्षा पूर्ण हो जाए, गुरु को बिना देर किये अपनी अंगुली छुड़ा लेनी चाहिए । ज्योतिर्मय दीप 'बुझे दीप को' तब तक ही संसर्ग दे जब तक उसकी बाती लौ न पकड़ ले। दीप जलाना ही तो मुख्य मुद्दा है। गुरु दीप है । दीप का काम दीयों की बाती को जगाना है, प्रज्वलित करे और आगे बढ़ चले। गुरु का काम शिष्य को सिर्फ यह इशारा करना होता है कि देखो यह रही अंगुली और वह रहा चांद और जब शिष्य ने चांद देख लिया तो किस अंगुली ने चांद दिखाया, यह बात गौण हो जाती है । अब यदि शिष्य चांद को नहीं देख पाता सिर्फ गुरु की अंगुली ही देखता रह जाता है, तो यह उसका दोष है । क्योंकि अंगुली कभी चांद नहीं हो सकती । पानी में चांद की परछाई देखने से काम नहीं चलने वाला | चांद देखने के लिए नजर को ऊपर उठाना पड़ेगा। नेत्र खोलने होंगे। लेकिन ज्यादातर लोग अंगुली पकड़कर बैठ जाते हैं, सीढ़ी को ही मंजिल मानकर चादर तानकर सो जाते हैं। गुरु के ही स्वरूप में खोकर रह जाते हैं । और फिर शुरू हो जाते हैं, तेरे गुरु और मेरे गुरु के झगड़े । प्रारम्भ हो जाता है दुराग्रह, कट्टरता, मत-मतान्तर । शिष्य को अपनी दृष्टि हमेशा लक्ष्य पर रखनी चाहिए। उसे चांद देखने से मतलब है, या अंगुली पकड़ने से। अगर अंगुली पकड़े रहे तो जिन्दगी भर बच्चे ही बने रह जाओगे । कभी अपने पैरों पर खड़े न हो सकोगे। वैशाखी चाहिये हर हालत में । अब तुम्हें सत्य देखने से मतलब है या गुरु को देखने से ? गुरुं ने इशारा करके चांद दिखाया और जब चांद देख लिया तो फिर उस अंगुली का ज्यादा महत्व नहीं है जिसने दिखाया। यह तुम्हारा भ्रम है कि गुरु की शरण में जाने से तुम्हें समकित मिल जाएगा, बोधिसत्य प्राप्त हो जाएगा। गुरु के पास समकित की कोई टकसाल नहीं खुली है कि तुम पहुंचे और गुरु तुम्हें समकित दे देंगे। समकित का दीप तो तुम्हें स्वयं में ही प्रज्वलित करना पड़ेगा। गुरु का काम तो तुम्हें कंदील थमाना और यह प्रेरणा देना है कि आगे बढ़ो । प्रकाश तुम्हारे साथ-साथ आगे बढ़ता जाएगा। Jain Education International नयन बिना पावें नहीं / ४७ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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