Book Title: Bina Nayan ki Bat
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 68
________________ कई दिनों से मैं एक आदमी की प्रतीक्षा कर रहा था ताकि देवी का अर्घ्य सके। आज मेरी प्रतीक्षा पूरी हो जाएगी । उसने देखा, जो आदमी करीब आता चला जा रहा है, वह तो कोई साधु है, भिक्षु है । मन में एक बार इच्छा हुई कि भिक्षु को न मारा जाए लेकिन उसकी प्रतिज्ञा का क्या होगा? उसने बुद्ध को ललकारा, ऐ साधु! तुम जहां हो वहीं रुक जाओ । बुद्ध ने सुनकर अनसुना कर दिया और आगे बढ़ते रहे । अंगुलीमाल को गुस्सा आ गया। सोचा, अरे! एक भिक्षु ने मेरी अवमानना कर दी। उसने फिर कहा - भिक्षु रुक जाओ, वरना तुम्हें मैं खत्म कर दूंगा । बुद्ध ने कहा- वत्स! मैं तो रुका हुआ हूँ। अगर हो सके तो तुम रुक जाओ। यह कहते हुए भी बुद्ध चलते रहे । अंगुलीमाल को आश्चर्य हुआ । यह भिक्षु होकर झूठ बोलता है। खुद चल रहा है और कहता है मैं रुका हूँ और मैं जो रुका हुआ हूं, तो मुझे कहता है रुक जाओ। वह दौड़कर बुद्ध के पास आया और अपना फौलाद उठाकर चिल्लाया- तुमने झूठ क्यों कहा भिक्षु ! तुम भिक्षु होकर झूठ क्यों बोले ? मैं अब तुम्हें जीने नहीं दूंगा । वह प्रहार करने को उद्धत हुआ। तभी बुद्ध बोले- वत्स! मैं तो रुक गया। जिसका मन रुक गया, वह रुक गया लेकिन तुम निरन्तर हिंसा और क्रूरता में बहते चले जा रहे हो। तुम्हारा मन इनमें निरन्तर चलता चला जा रहा है । इसलिए अगर हो सके तो तुम अपने आपको रोक लो। कब तक इस हिंसा और क्रूरता के मार्ग को तुम अपनाए रहोगे । हो उपदेश सुनकर अंगुलीमाल और क्रोधित हुआ और वार करने के लिए फौलाद ऊपर उठाया, लेकिन न जाने क्या हुआ जो वह वार बुद्ध पर न पड़कर स्वयं अंगुलीमाल के ही सिर आ पड़ा और वह भगवान बुद्ध के चरणों में गिर पड़ा। दो मिनट पहले जो भयंकर डाकू था, दो मिनट में वही भगवान बुद्ध का अन्तेवासी हो गया, साधु - भिक्षु हो गया । Jain Education International पूरा बुद्ध उस अंगुलीमाल को साथ लेकर अपने विहार में पहुँचे, जहां और भी बहुत से 'साधु, शिष्य भिक्षु थे । बुद्ध अपने आसन पर बैठे । अंगुलीमाल उनके पास बैठ गया। सारे नगर में यह घटना बिजली की भांति फैल गयी । राजा अजातशत्रु तक भी यह खबर पहुंची कि हिंसक, रक्त पिपासु अंगुलीमाल भगवान बुद्ध से परास्त हो गया है, उसने हिंसा छोड़ दी है, वह उन का शिष्य बन गया है। अजातशत्रु बुद्ध के पास पहुँचा और उनसे पूछा - भन्ते! क्या आप उस मार्ग से गुजरे ? 'हां! मैं उस मार्ग से गुजरा । ' For Personal & Private Use Only मन की चैतन्य - यात्रा / ६३ www.jainelibrary.org

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