Book Title: Bina Nayan ki Bat
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 69
________________ 'क्या आपको वहां अंगुलीमाल मिला?' 'हां! मिला।' 'क्या उसने आपका कुछ नहीं किया?' 'नहीं! उसने मुझे तो कुछ नहीं किया, पर वह स्वयं बहुत कुछ हो गया 'क्या मतलब?' बुद्ध ने कहा - यह देखो। यह मेरे बगल में जो भिक्षु बैठा है, वह कोई और नहीं, अंगुलीमाल है। अजातशत्रु स्तब्ध रह गया। कल तक का हत्यारा आज भिक्षु बन गया है। उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा । दोपहर बारह बजे अंगुलीमाल ने भगवान बुद्ध से पूछा - भन्ते! आहार के लिए जाने की अनुमति दीजिए। बुद्ध ने कहा - वत्स! आज तुम प्रथम बार आहार के लिए जा रहे हो, लेकिन आज का दिन तुम्हारे आहार का दिन नहीं, बल्कि तुम्हारे जीवन की कसौटी का दिन है। इसलिए आज जब जाओ तो अपने भावों और परिणामों में इतनी पवित्रता और रमणीयता रखना कि आज का आहार तुम्हारे लिए मोक्ष का विहार बन जाए। - अंगुलीमाल ने कहा - प्रभु! ऐसा ही होगा। अंगुलीमाल रवाना हुआ और बीच बाजार में पहुँचा। उसने अब तक न जाने कितने लोगों की हत्याएं की थीं। जिस-जिस ने सुना कि अंगुलीमाल भिक्षु के रूप में आया है तो पहले तो वह थोड़ा सहमे, लेकिन फिर उसे निहत्था अपने बीच पाकर उनकी प्रतिहिंसा जाग उठी। उन्होंने कहा - ये पाखंडी है। इसे मारो, पत्थरों से पीटो, तलवार चलाओ, मार डालो इसे। लोगों ने उसे पीटा, गालियां दीं। पत्थर फेंके। वह सहता रहा, सहता रहा। चुपचाप । वह लहूलुहान हो चुका था। और ज्यादा सहन न हुआ तो वह बीच चौराहे पर गिर पड़ा। वह बेहोश सा पड़ा था। अचानक उसने अपने माथे पर किसी के हाथ का कोमल स्पर्श महसूस किया। उसने आंखें खोली तो भगवान बुद्ध को अपने पास पाया। वह मुस्कुराया और उसने भगवान को प्रणाम किया। बुद्ध ने उससे पूछा, बोलो वत्स! इस समय तुम्हारे मन में क्या हो रहा बिना नयन की बात : श्री चन्द्रप्रभ / ६४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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