Book Title: Bina Nayan ki Bat
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 70
________________ अंगुलीमाल ने कहा - भन्ते! आप मुझसे पूछते हैं? इस समय मेरे मन में एक अहोभाव जग रहा है। मेरे मन में यह भाव पैदा हो रहा है कि ये सारे लोग धन्य हैं। मैंने जीवन भर पाप बटोरे। ये लोग कुछ क्षणों में ही मेरे सारे पाप धो डालने में मेरी मदद कर रहे हैं। प्रभु! मेरे मन में इन लोगों के प्रति बड़ा अहोभाव, बड़ा कृतज्ञता का भाव जग रहा है। ये लोग धन्य हैं प्रभु! इनके प्रति क्षमा है, मैत्री है, प्रमुदितता है। बुद्ध ने कहा - अंगुलीमाल! तुम्हारी मृत्यु, मृत्यु नहीं अपितु निर्वाण का महोत्सव है। तुम मर नहीं रहे हो, तुम अरिहन्त हो गये हो। ऐसे मनुष्यों के समक्ष भगवान बुद्ध स्वयं खड़े होकर कहते हैं - अरिहन्तों को नमस्कार हो। उन सारे अरिहन्तों को, जो भले ही जीवन भर डाकू रहे हों, कल तक वे चाहे कुछ भी रहे हों, लेकिन जो मरते वक्त अपने भावों में एक अरिहन्त-भाव भरकर मर रहे हैं, उनकी मृत्यु धन्य है। ध्यान में मृत्यु हो, मृत्यु समाधि बने, धन्यभाग! प्रणाम है ऐसे सब अंगुलीमालों को, ऐसे सभी कृतपुण्यों को, जिनके अन्तरंग में अरिहन्त होने के भाव जग रहे हैं। की चैतन्य-यात्रा / ६५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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