Book Title: Bina Nayan ki Bat
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 72
________________ आनन्द ने कहा - भन्ते! तो मैं आपसे निवेदन करूंगा कि कहीं और चल पड़ें। वत्स! अगर वहां भी यही हालत हुई तो? तो हम फिर स्थान बदल लेंगे। भगवान ने कहा - वत्स! ऐसे कहां-कहां भागते फिरोगे? कितने स्थान बदलोगे? गालियां तो तुम्हें हर जगह ऐसे ही मिलेंगी। चेहरे बदल-बदल कर ये ही लोग, ऐसे ही गांव तुम्हें हर पड़ाव पर मिलेंगे। जहां-जहां मनुष्य का निवास है, गालियां तो तुम्हें वहां-वहां अवश्य मिलेंगी। आखिर तुम कितने गांव बदलोगे? गालियों से घबराकर स्थान बदलने की चेष्टा मत करो। विष पी जाने वाला ही, जहर पचा जाने वाला ही शिव-शंकर होता है अन्यथा अमृत पीकर भी देवों का कुल रोता है। अच्छा तो यह होगा कि तुम किसी गाली को पकड़ो मत, स्वीकार मत करो। जैसे ही तुम किसी गाली को पकड़ोगे, वह गाली तुम्हारी हो जाएगी। जब कोई गाली देता है, लेकिन तुम उसे लेते नहीं, तब तक कोई परेशानी नहीं। जैसे ही तुमने गाली को स्वीकार कर लिया, तुम्हारे अन्दर उसकी प्रतिक्रिया पैदा होगी। यहां तो हर इन्सान ने जन्मजात गालियां सीख रखी हैं। तुम किस-किस से बचोगे? किस-किस का मुंह बन्द करोगे? मनुष्य को थोड़ा-सा क्रोध आया, थोड़ा सा बेमन हुआ है और वह गालियां देना शुरू कर देता है। तुम स्थान बदल-बदल कर उनसे बच नहीं पाओगे। प्रतिकार का बस एक ही उपाय है कि गाली को स्वीकार ही मत करो। जैसे ही तुमने किसी की गाली को कानों में प्रवेश दिया और भीतर उतारा, तत्काल तुम्हारे भीतर प्रतिक्रिया स्वरूप उसके प्रति एक गाली जन्म लेगी, और फिर प्रतिक्रिया की प्रतिक्रिया से गालियों का एक अन्तहीन सिलसिला चल पड़ेगा। गाली से गाली लड़ने लगेगी। जब आग से आग भिड़ती है, तो क्या होता है? जब क्रिया की प्रतिक्रिया और प्रतिक्रिया की प्रतिक्रिया होगी तो उससे प्रतिहिंसा का कितना भीषण विस्फोट होगा, यह सोचने जैसी बात है। कोई भी क्रिया तब तक खतरनाक नहीं होती, जब तक उसकी प्रतिक्रिया न हो। कोई भी क्रिया तभी बन्धनकारक होती है, जब उसकी प्रतिक्रिया अभिव्यक्त हो । जैसे ही प्रतिक्रिया व्यक्त होती है, तत्काल कर्म का एक स्फुलिंग, उत्तेजना की धड़कन पैदा होगी, जो हमारी आत्मा को चारों ओर से जकड़ लेगी। जगो पहरुए, नचिकेता की अग्नि जली लासानी । करें क्रोध पर क्रोध / ६७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90