Book Title: Bina Nayan ki Bat
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 51
________________ सद्गुरु वह है जो दूसरों को पहले तो शिष्य बनाता है और फिर कहता है 'अप्प दीवो भव'। अपने दिये आप खुद बनो । दुनिया में दो तरह के मत हैं । एक मत कहता है, परमात्मा की राह पर गुरु जरूरी है, क्योंकि 'गुरु बिना ज्ञान नहीं ।' लेकिन दूसरी परम्परा कहती है कि 'गुरु संग ज्ञान नहीं ।' पहली परम्परा प्रेरणा देती है कि बिना गुरु के ज्ञान नहीं है। वह अपनी जगह ठीक है, लेकिन जब यह बात कोई गुरु ही मंच पर बैठकर कहता है, तो परोक्ष रूप से वह यह भी चाहता है कि तुम मुझे अपना गुरु बना लो, क्योंकि मैं गुरु हूँ और गुरु के बिना तुम्हें ज्ञान नहीं मिलेगा । मैं इन गुरुओं से पूछता हूं क्या करोगे किसी के गुरु बनकर । दूसरों के तुम जितने ज्यादा गुरु बनोगे, तुम्हारा अहंकार उतना ही बढ़ता जाएगा और अन्ततः गुरु और शिष्य के अहंकार, जब आमने-सामने खड़े होंगे तो संघर्ष अवश्यम्भावी है । जिन्होंने गुरु-शिष्यों के बीच गाली-गलोच होते सुना है, डंडे चलते देखे हैं, वे यह जानते हैं। जो व्यक्ति अनजान है, अबोध है, अगर उसे कह दिया जाए कि गुरु को कोई जरूरत नहीं है, तो यह भी एक भूल है । उसे गुरु की जरूरत है क्योंकि वह बच्चा है और बच्चे को अंगुली का सहारा मिलना आवश्यक है । इसके लिए शिष्य को अपना अहंकार गुरु के समक्ष समर्पित करना होता है । यह सिर झुकाया कि न झुकाया, इससे फर्क नहीं पड़ेगा अगर सिर झुकाने के बाद भी अहंकार वैसा का वैसा ही रहा । शिष्य ने गुरु के चरणों में पचासों बार सिर नवाया, लेकिन जरा सी विपरीत बात गुरु ने कह दी तो शिष्य सीधा गुरु का महागुरु बन गया । यह झुकना कोई झुकना नहीं है । गुरु तो आपकी उन्नति के लिए, आपकी हिम्मत बढ़ाने के लिए, आपकी परीक्षा लेने के लिए न जाने क्या-क्या करवा सकता है। यह तो गुरु पर ही निर्भर करता है। शिष्य की ओर से तो चाहिये पूर्ण समर्पण । लेकिन गुरु की भूमिका की भी एक सीमा है । गुरु को हमेशा इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि वह शिष्य को बस अंगुली पकड़ाये, वो भी हौले से। कहीं ऐसा न हो कि शिष्य को अंगुली पकड़ाते पकड़ाते स्वयं उसकी अंगुली पकड़ ले और छोड़े ही नहीं । गुरु का काम तो पोले- पोले हाथों से शिष्य को अंगुली पकड़ाना होता है, कसकर पकड़ना नहीं होता । वरना शिष्य बिना गुरु के चल ही न पायेगा । दो साल का बच्चा बिना मां के चल नहीं पाता, यह बात तो समझ मे आती है पर अगर आठ साल का बच्चा भी मां की अंगुली का सहारा लेकर ही बिना नयन की बात : श्री चन्द्रप्रभ / ४६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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