Book Title: Bina Nayan ki Bat
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 54
________________ होगा, जो हमारी संभावनाओं के दर्शन हमें न करा सके। बेहतर होगा कि अपने भीतर के शास्त्रों को समझने के लिए आप इन बाहर के शास्त्रों को दराजों की शोभा बना डालो। जब तक आंखों के आगे हम किताबों की कदाग्रहता के चश्मे लगाते रहेंगे तब तक बात चर्चाओं के दायरे तक सीमित रहेगी, लेकिन श्रीमद् राजचन्द्र तो बिना नयनों की बात, नयनों के बिना ही देख पाने की बात करते है दर्शन पाहुड़ में एक बड़ी गहरी गाथा है। आचार्य कुन्दकुन्द कहते हैं दंसण भट्ठा भट्ठा सण भट्ठस्स णत्थि णिव्वाणं । सिझंति चरिय भट्ठा सण भट्ठाण सिझंति । जो दर्शन से भ्रष्ट है वही भ्रष्ट है। जो अपने भीतर अन्तर-स्वभाव से, अपनी सहजता से पतित, विचलित, भ्रष्ट हो चुका है, वही भ्रष्ट है। कुन्दकुन्द जैसी इतनी बड़ी क्रान्तिकारी बात कहने वाला अन्य कोई आचार्य पूरी जैन परम्परा में और कोई नहीं हुआ होगा। कुन्द-कुन्द कहते हैं सिज्झन्ति चरिय भट्ठा-जो चारित्र्य से भ्रष्ट है, वह शायद मुक्ति प्राप्त भी कर लेगा, लेकिन जो आदमी दर्शन से भ्रष्ट है, उसके निर्वाण की कल्पना भी नहीं की जा सकती। बात अपनी दृष्टि की है, दृष्टिकोण की है, दृष्टि में हुए मिलावट को दूर करने की है। मान लीजिए दो आदमी कारागृह में कैद है और वह कारागृह किसी तालाब के किनारे पर स्थित है। एक कैदी कहता है कहां कारागृह बनाया है। इस तालाब में कीचड़ है, मच्छर है, कितने कीड़े-पतंगे उड़ते-रहते हैं, कितनी दुर्गन्ध आती है। वहीं दूसरा कैदी आसमान की ओर नजर उठाकर कहता है वाह क्या नजारा है? क्या आसमान की नीलिमा है? कैसी चांदनी बरस रही है? वह व्यक्ति चांद में नहा उठता है। लेकिन दोनों की नजरों में फर्क है। एक की नजर तालाब के कीचड़ पर है। और दूसरे की आसमान में उगने वाले चांद पर है। पहला किरण से अछता रह जाता है, दूसरा चांद में नहा लेता है। जैसी जिसकी दृष्टि होती है, वैसी ही उसकी सृष्टि होती है । दृष्टि पर ही तो सब कुछ केन्द्रित है। अन्तरदृष्टि का विमोचन ही जीवन में अध्यात्म का उद्घाटन है। दृष्टि को उपलब्ध होना जीवन की दृष्टि से महान् उपलब्धि है। कोई व्यक्ति जन्मजात गूंगा हो, बहरा हो, चलेगा, लेकिन अंधा हो तो संसार से उसका संबंध ही टूट जाएगा। बहरे हुए तो लिखकर काम चला लोगे। गूंगे हुए तो इशारों से बात कर लोगे, लेकिन अंधे हुए तो प्रत्यक्ष दर्शन नहीं होगा, सुनी-सुनाई बातों पर ही विश्वास करना पड़ेगा। यानी सत्य का दर्शन नहीं कर पाओगे। नयन बिना पावें नहीं / ४६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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