Book Title: Bina Nayan ki Bat
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 45
________________ तलहटी में ही बैठे न रह जाओ बल्कि उससे आगे की यात्रा प्रारम्भ कर सको। ___ संसार में 'गुरु-शिष्य' सम्बन्ध के अलावा जितने भी सम्बन्ध हैं, सब सांयोगिक और पौद्गलिक है। लेकिन गुरु-शिष्य में न केवल सांसारिकता और पौद्गलिकता का कोई सम्बन्ध होता, बल्कि आध्यात्मिकता का भी कोई सम्बन्ध नहीं होता। यदि कोई सन्तान की कामना-पूर्ति के लिए गुरु से वरदान पाने की इच्छा लेकर, गुरु के पास जा रहा है, तो वह सांसारिक सम्बन्ध जोड़ने जा रहा है। यदि मन की शान्ति पाने के लिए गुरु की शरण में जा रहा है तो वह आध्यात्मिक सम्बन्ध बनाने जा रहा है। लेकिन सम्बन्ध तो सम्बन्ध ही है, चाहे सांसारिक हो या आध्यात्मिक । गुरु-शिष्य के सम्बन्ध को मैं सम्बन्ध नहीं कहना चाहता, संसर्ग कहना नहीं चाहता। कारण इस सम्बन्ध में अध्यात्म तो होगा, लेकिन अध्यात्म के नाम पर भी इच्छा-विस्तार ही परिपक्व होगा। इच्छा चाहे संसार की हो, चाहे अध्यात्म की, इच्छा दोनों ही है। खूटे बदल जाएंगे। संसार से जुड़ी हुई इच्छा अध्यात्म से जुड़ जायेगी, लेकिन इच्छा तो होगी ही, सम्बन्ध तो रहेगा ही। फिर चाहे सम्बन्ध पिता-पुत्र का हो या गुरु-शिष्य का। इसलिए मैं गुरु-शिष्य सम्बन्ध के बीच एक विरोधाभास खड़ा करना चाहता हूँ। दुनिया में और तो सभी सम्बन्धों को जोड़ने की बात करते हैं, एक मात्र गुरु ही ऐसा होता है, जो हर सम्बन्ध को तोड़ने की प्रेरणा देता है। असली गुरु सद्गुरु वह होता है जो शिष्य का सम्बन्ध न केवल संसार से तोड़ता है बल्कि गुरु से और अपने आप से भी तोड़ डालता है। इसलिए जहाँ-जहाँ पर भी सम्बन्धों की जंजीरें बंधी हैं, वहाँ-वहाँ से उन्हें खोलनी पड़ेंगी। यदि नौका तट से, जंजीरों से बंधी हुई है, तो जंजीरों को खोले बिना नौका कभी भी आगे नहीं बढ़ पायेगी। मैंने सुना है कुछ शराबी, शराब के नशे में समुद्र के तट पर पहुँचे और तट पर खड़ी नौका पर सवार हो गये। समुद्र विहार करने के लिए पतवारें खोल ली और चलाने लगे। रातभर खूब पतवारें चलाई। सुबह हुई और नशा कुछ कम हुआ तो उनमें से किसी ने कहा - हमने रातभर पतवारें चलाई। ठंडी-ठंडी हवा में हम इतनी दूर चले आये हैं, किनारे भी लग गये हैं। जरा पता तो करें कि रातभर में हम कितने किलोमीटर की यात्रा कर चुके हैं। उन शराबियों में से एक व्यक्ति नौका से नीचे उतरा और हंसने लगा। बोला, बड़ा मजा आया। हम जहाँ से रवाना हुए थे, वहीं पहुँच गये हैं। सभी ने उतर कर देखा, वे रात को जहाँ से रवाना हुए थे, वहीं खड़े हैं। क्योंकि नौका की जंजीरें तो खोली ही नहीं बिना नयन की बात : श्री चन्द्रप्रभ / ४० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90