Book Title: Bina Nayan ki Bat
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 43
________________ पड्यो न सद्गुरु पाय। दीठा नहीं निज दोष तो, तरिए कोण उपाय। तिरने का उपाय प्रभु की लय का लगना है। अब तिरना है कि डूबना है या किनारे पर ही खड़े रहना है, या अपनी नौका के लंगर खोलकर आगे बढ़ना है, यह तो आप पर ही निर्भर है। पाता वही है जो पानी में छलांग लगाता है। किनारे पर खड़े-खड़े मरने से तो तिरते-तिरते, तिरने के प्रयास में मरना ज्यादा सुखद है। गधे और कुत्ते जैसी सौ साल की जिंदगी से तो सिंह और हाथी जैसी दो दिन की जिंदगी ही काफी है। सोया सिंहत्व जगाएं, सोया स्वाभिमान जगाएं, सोयी प्यास जगाएं, उपलब्धि तुम्हारे सामने होगी। तुम ही तुम्हारे उपलब्धि बनोगे। जो उपलब्ध हो रहे हैं, सिद्ध-सार्थक हो रहे हैं, उन्हें मेरा अहोभाव । नमस्कार। बिना नयन की बात : श्री चन्द्रप्रभ / ३८ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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