Book Title: Bina Nayan ki Bat
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 44
________________ नयन बिना पावे नहीं मेरे प्रिय आत्मन्! आज का पद है - बिना नयन पावे नहीं, बिना नयन की बात । जो सेवे श्री सद्गुरु, सो पावे साक्षात ।। राजचन्द्र के इस पद में प्रवेश करें उससे पूर्व कुछ पहलू समझ लें। किसी युवक को पर्वत पर चढ़ाई करनी थी। युवक भोर होने से पूर्व अन्धेरे-अन्धेरे ही पहाड़ की ओर रवाना हो गया। तलहटी तक पहुंचा, तो पाया कि तलहटी में तो प्रकाश है, जिस रास्ते से वह आया, उस पर भी चिमनियां जल रही थीं, लेकिन जिस पर्वत पर उसे चढ़ना था, उस पर घुप्प अंधेरा था। युवक का मन यह सोचकर थोड़ा विचलित हुआ कि आखिर ऐसे घटाटोप अंधकार में पर्वत की यात्रा कैसे हो पाएगी। रास्ता कैसे सूझेगा। इतने में ही उसके पास एक वृद्ध व्यक्ति हाथ में कंदील लिए पहुँचा। उसने युवक से कहा - तुम निराश क्यों हो? इस कंदील को थामो और इसकी रोशनी के सहारे पहाड़ पर चढ़ जाओ। युवक ने लालटेन की रोशनी देखी और कहा - इसके सहारे इतने बड़े पहाड़ की चढ़ाई कैसे पूरी हो पायेगी? इस कंदील का प्रकाश तो केवल दस-बारह मीटर तक ही जाता है, जबकि मुझे तो बीस किलोमीटर लम्बी यात्रा करनी है। वृद्ध ने कहा, तुम आगे बढ़ो तो सही, कंदील का प्रकाश भी तुम्हारे साथ-साथ आगे बढ़ता जायेगा। तुम रुकोगे, तो यह भी रुक जायेगा। तुम जितना आगे बढ़ोगे, उतना ही यह प्रकाश तुम्हारा साथ निभायेगा।। गुरु का दायित्व भी इतना ही होता है। गुरु से सम्बन्ध होने का अर्थ भी सिर्फ यही है कि गुरु तुम्हारे भीतर एक हौंसला, एक हिम्मत जगाए ताकि तुम नयन बिना पावें नहीं / ३६ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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