Book Title: Bina Nayan ki Bat
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 40
________________ रहनी चाहिए। दुनिया चाहे कुछ भी कहे, खोटा या खरा, भला या बुरा लेकिन - तू तो राम सुमर जग लड़वा दे। हाथी चलत है अपनी गति से, कुतर भूसत वा को भूसवा दे। तू तो राम सुमर जग लड़वा दे। कबीर कहते हैं, तू तो राम का स्मरण करता चला जा। आलोचना करने वालों को करने दे। हाथी तो अपनी चाल से चलता है। कुत्तों के भौंकने की वह परवाह नहीं करता, अन्यथा चल ही नहीं पाता। इसलिए तुम तो अपने रास्ते पर बढ़ते चले जाओ, तुम तो अपना कार्य करते चले जाओ। अगर दुनिया की सुनोगे, तो उसकी कैसे सुन पाओगे, जो वह अन्तर में झंकृत हो रहा है। दुनिया तो कहेगी, वह तो तुम्हें सुरति से डिगाएगी। उसका तो काम पथ से डिगाना है ही, तुम न डिगो, यही तुम्हारी अडिगता रहनी चाहिए। जो लड़ते हैं उन्हें लड़ने दो। तुम मत कूद पड़ना दूसरों की लड़ाई में, अन्यथा कुछ भी हासिल नहीं होगा। एक बार दो आदमी लड़ पड़े। एक ने कहा कि अगर मेरा एक चूंसा भी तेरे पड़ गया, तो पूरी बत्तीसी बाहर आ जाएगी। दूसरे ने कहा, अच्छा! मेरी बत्तीसी बाहर आ जाएगी? अरे! अगर तुझे मेरा एक ही घूसा पड़ गया तो चौंसठ दांत बाहर आ जाएंगे। पास खड़े एक आदमी ने कहा, भैया! बत्तीस दांत बाहर आने की बात तो समझ में आती है, लेकिन चौंसठ दांत वाली बात समझ में नहीं आती। दूसरे ने कहा, मुझे पहले ही पता था कि तू बीच में जरूर बोलेगा। बत्तीस इसके, और बत्तीस तेरे। यह दुनिया तो ऐसे ही लड़ती रहेगी। दुनिया का रिवाज, प्रपंच तो ऐसा ही चलेगा। लेकिन तुम अपने को उसमें मत उलझाओ। 'तू तो राम सुमर जग लड़वा दे'। खाना, पीना, उठना, बैठना सब परमात्मा के नाम पर होना चाहिए। परमात्मा की परिक्रमा होनी चाहिए। वह व्यक्ति धन्य है, जो बाजार में जाते हुए भी कहता है कि परमात्मा के मन्दिर की परिक्रमा करने जा रहा हूँ। कबीर कहते हैं - खाऊ, पिऊ सो सेवा, उलूं, बैलूं सो, परिक्रमा। मैं जो खाता-पीता हूँ, वह मैं नहीं खाता। यह जो मेरे अन्दर तू बैठा है, उसे खिला-पिला रहा हूँ। मेरे भीतर जो भगवान विराजमान है, उन्हें खिलाता हूँ। यह शरीर नश्वर होते हुए भी परमात्मा के रहने का घर है, मन्दिर है। इसलिए यह मन्दिर खण्डहर नहीं होना एक बार प्रभु हाथ थाम लो / ३५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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