Book Title: Bina Nayan ki Bat
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 27
________________ से जिया। सोये-सोये जिये या जागे-जागे? फूल खिला या कली कांटों से ही घिरी रह गयी? जीवन का अर्थ जीवन के उपयोग में ही है। जीवन का अर्थ जन्म और मृत्यु में नहीं। जीवन का अर्थ जीवन को सही ढंग से जीने में है। जन्म और मृत्यु महत्वपूर्ण नहीं है, महत्वपूर्ण जीवन में जो समय मिला है, उसका उपयोग करने में है। समय तो सबके लिए एक जैसा आता है, लेकिन जैसी जिसकी पात्रता, व्यक्ति वैसा ही उसका उपयोग करता है। बादल से गिरी पानी की बूंद अगर मिट्टी में गिर जाए तो उसी समय धूमिल हो जाएगी, सागर में गिरे तो पानी में समा जाएगी, तप्त लोहे पर गिरे तो भाप बनकर उड़ जाएगी, केले के पेड़ के गर्भ में गिरे तो कपूर बन जाएगी, सर्प के मुंह में पड़कर जहर और सीप के मुंह जाकर मोती बन जाएगी। पानी की बूंद वही एक है, समय वही एक है। पर एक के लिए वह जहर बढ़ाती है और दूसरे के लिए मोती। जिदंगी सब के साथ है, फर्क सिर्फ उसके उपयोग करने का है। महावीर भी मरेंगे और गोशालक भी, गांधी भी मरेंगे और हिटलर भी, पर गोशालक और हिटलर से दुनिया लज्जित होगी, वहीं महावीर और गांधी पर नाज करेगी। निश्चित तौर पर मरेंगे आप भी, मैं भी, लेकिन मृत्यु होनी चाहिए कपूर की तरह, जो खुद जलकर भी यह अहसास करा दे कि यहाँ कोई कपूर जला था। ऐसी खुशबू छोड़कर जाएं। एक गुलाब का फूल पौधे पर रहेगा, तब भी खुशबू देगा, भगवान के चरणों में चढ़ाया जाएगा तब भी महकेगा, किसी के पैरों तले कुचला जाए तो भी अपनी सौरभ बिखेर जाएगा और यदि कुम्हला भी जाए तो भी सूखकर मिठाइयों को सुवासित करेगा। कीमत पंखुरियों की नहीं, फल में रहने वाली खुशबू की है। प्लास्टिक के फूल गुलदान में सजाए जाते हैं। असली फूलों को हार बनाकर गले में पहना जाता है। आजकल के दोस्तों ये कागज के फूल हैं सब, देखने में खुशनुमा पर सूंघने में धूल हैं। जिस फूल में खुशबू है, वह फूल गले का हार है। जिस फूल में खुशबू नहीं वह फूल ही बेकार है। सुगंध-हीन फूल की कीमत दो कौड़ी भी नहीं होती। आपके जीवनपुष्पों को सुवासित करने के लिए ही निवेदन कर रहा हूँ ताकि आप लोग अपने अप्रतिम जीवन का, अमूल्य समय का उपयोग कर सकें। एक बात तय है कि अगर समय बीत गया, जीवन का यह अपूर्व अवसर बीत गया, तो बीता हुआ समय कभी भी लौटकर वापस नहीं आएगा। अगर कोई देवता आपके व्यवहार विना नयन की बात : श्री चन्द्रप्रभ / २२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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