Book Title: Bina Nayan ki Bat
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 15
________________ है, मनुष्य धर्म के लिए नहीं । इसलिए मनु में और राजचन्द्र में फर्क है । मनु वह व्यक्ति हैं, ऐसे भगवान हैं, जो मनुस्मृति के लिए, या मनु ने जो सिद्धान्त बताए हैं, उनके लिए वे मनुष्य को कुर्बान कर सकते हैं। लेकिन हम मनुष्य को उन सिद्धान्तों के लिए कुर्बान नहीं कर सकते । मनुष्य के लिए उन सिद्धान्तों का हम उपयोग करवा सकते हैं। मनुष्य का निर्माण सिद्धान्तों के लिए नहीं हुआ है, सिद्धान्तों का निर्माण मनुष्य के लिए हुआ है। मनुष्य और सिद्धान्त अगर एक सहचर हो जायें, वहीं जीवन में साधना सफलीभूत हो जाती है, सिद्धि और सफलता हासिल हो जाती है । दुनिया में जितने भी सिद्धान्त बने हैं, समूह के लिए बने हैं, संघ समाज के लिए बने हैं, लेकिन मैं जिस सिद्धान्त की चर्चा कर रहा हूं, उसका सम्बन्ध एक - एक व्यक्ति से है । नियम और सिद्धान्त तो सार्वजनिक होते हैं। सबके लिए समान होते हैं । कोई भी सिद्धान्त ऐसा नहीं है जिसका अर्थ प्रत्येक व्यक्ति पर एक जैसा लागू हो। आखिर कोई भी इन्सान एक जैसा नहीं है। चेहरे अलग-अलग हैं। सबके पहनावे अलग-अलग हैं। सबके दृष्टिकोण अलग-अलग हैं, तो फिर सिद्धान्त एक जैसे क्यों? इसलिए मैं एक-एक व्यक्ति से जुड़ रहा हूं । महावीर के लिए गौतम एक होंगे। लेकिन मेरे लिए आप सब गौतम हैं । बुद्ध के लिए आनन्द एक होंगे, लेकिन मेरे लिए तो आप सभी आनन्द हैं और मैं एक-एक गौतम से, एक - एक आनन्द से बात कर रहा हूं । राजचन्द्र के लिए लघुराज स्वामी एक होंगे। लेकिन मेरे लिए आप सभी लघुराज स्वामी हैं और मैं एक-एक व्यक्ति के जीवन में रूपान्तरण, एक क्रान्तिकारी रूपान्तरण लाने की बात कर रहा हूं । बहुपुण्य केरा पुंजी शुभ देह मानव नो मल्यो, तो भी अरे-भव चक्र नो, आंटो नहीं एके टळ्यो । मनुष्य का शरीर मिल गया, यह पुण्य की बात है । सौभाग्य की बात है । पर क्या यही सौभाग्य की बात है शरीर मिल गया मनुष्य का? मनुष्य का शरीर तो एक वेश्या को भी मिला है। एक चोर को भी मिला है, एक डाकू को भी । हिटलर को भी मिला है और गांधी को भी । क्या मनुष्य शरीर की यह महिमा है? क्या हिटलर का शरीर प्राप्त हो जाना बड़े पुण्य की बात है ? यह कोई बड़ा पुण्य नहीं है। पुण्य तो तब होता है, जब भीतर का सोया हुआ मनुष्य जग जाए। तब समझना कि 'बहु पुण्य केरा पुंजथी शुभ देह मानव ना मल्यो ।' तुम्हें तुम्हारी काया नसीब से मिली। भीतर के मनुष्यत्व का जन्मना ही भीतर के परमात्मा का सामीप्य प्राप्त करना है । परमात्मा हमारी आत्मा का सपना बिना नयन की बात : श्री चन्द्रप्रभ / १० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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