Book Title: Bina Nayan ki Bat
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 11
________________ ये सब तस्लीम, लेकिन आदमी अब तक भटकता है। न जाने मानवजाति ने अब तक कितने सारे तीर्थंकर, अवतार और पैगम्बर पैदा किये हैं, पर यह मानव जाति का दुर्भाग्य है कि वह अब तक भटक रही है । और यह तब तक भटकती रहेगी, जब तक इन्सान के भीतर तत्व को प्राप्त करने की कोई अभीप्सा, कोई संकल्प नहीं जगेगा। जब तक संकल्प नहीं होगा, रुचि नहीं होगी। तब तक यात्रा होगी ही नहीं । वह प्रार्थना मृत है, जिसमें परमात्मा को पाने की परिपूर्ण प्यास नहीं है । प्यास ही परमात्मा की यात्रा है । अन्यथा सम्भव ही नहीं है यह यात्रा, क्योंकि बीच में न जाने कितनी सारी बाधाएं आती हैं, भंवर आते हैं, तूफान खड़े हो जाते हैं, लुभाए जाते हैं और आदमी फिसल जाता है । तिब्बतियन कहावत है। सौ रवाना होते हैं, तो दस पहुंचते हैं। मगर यह मार्ग ऐसा है कि हजार रवाना होते हैं, तब कहीं मुश्किल से दस पहुंचते हैं। लेकिन यह भी जबानी जमा खर्च हुआ। हकीकत तो यह कि लाखों रवाना होते हैं तब कहीं राजचन्द्र जैसे कोई एक-आध व्यक्ति पहुंच पाते हैं। बाकी के तो बीच के प्रलोभनों में ही अटक कर रह जाते हैं । मार्ग पर आ भी गये तो क्या हुआ ? सन्त, आचार्य भी बन गए तो क्या हुआ ? प्रलोभन तो तब भी आते हैं। कोई कहता है, महाराज! मैं आपको आचार्य की पदवी दूंगा और सन्त महाराज पद की लोलुपता, पद के अहंकार में उल्टा नीचे गिर जाते हैं । संघ वाले प्रलोभन देते हैं कि प्रतिष्ठा करवानी है, कोई मन्दिर बनाना है, भवन बनाना है, किसी को पुरस्कार देना है । ये कितने-कितने सारे प्रलोभन आते हैं और यों आदमी आगे नहीं बढ़ पाता । प्रलोभनों में उलझ कर वह यहीं का यहीं पड़ा रह जाता है । हर प्रलोभन अपने आप में मकड़जाल में फंसाता है। दुनिया में कई तरह की एषणाएं होती हैं। पहली है - वितैषणा- धन की खोज। दूसरी होती है स्त्रैषणा - पत्नी की चाह । तीसरी होती है - पुत्रैषणा - पुत्र की चाह और चौथी होती है - लोकैषणा प्रसिद्धि की चाह । धन को छोड़ना सरल है, पत्नी को छोड़ना सरल है, पुत्र को, संसार को छोड़ना सरल है, लेकिन संन्यस्त जीवन में जाने के बाद लोकैषणा, प्रसिद्धि, प्रशंसा की इच्छा को छोड़ना काफी कठिन है । लेकिन आदमी जिस नाम की प्रशंसा चाहता है, वह नहीं जानता कि नाम कितना झूठा और कितना आरोपित है। वह समझता है कि मेरा नाम बढ़ रहा है। यह फैल रहा है । पर जरा सोचो कि अगर आपका नाम मिलापचन्द है, और आप सोचते हैं कि मिलापचन्द के नाम से लाखों का दान करूं, तो बिना नयन की बात : श्री चन्द्रप्रभ / ६ Jain Education International - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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