Book Title: Bina Nayan ki Bat
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 10
________________ यहां न मिलेगा। ये जो उनके पद हैं, ये बासी हो सकते हैं, पर ढूंढना पड़ेगा हमें कि इन पदों में कहीं कुछ ताजगी है, कहीं कोई सदा बहार की सम्भावना है ? ढूंढना पड़ेगा, तलाश करना पड़ेगा। इन पदों में से कहीं कोई संगीत आता हुआ दिखाई देगा। राजचन्द्र के पद कोई सिद्धान्त नहीं हैं । ये जीवन के अनुभवों की निष्पत्तियां हैं। सिद्धान्त अगर होते तो उन्हें श्रद्धा से सुना जाता । कल्पसूत्र में कोई सिद्धान्त है, वेद में कोई सिद्धान्त है, उपनिषदों में सिद्धान्त है, गीता में सिद्धान्त है, लेकिन राजचन्द्र में कोई सिद्धान्त नहीं है । ये तो उनके अनुभव के द्वार पर कुछ दीपक जले हैं और वो अनुभव उन्होंने आप लोगों को परोसे हैं। श्रीमद् राजचन्द्र की अन्तरात्मा तक हम पहुंचें, उनके अमृत पदों में प्रवेश करें, उससे पहले मैं सिर्फ यह कह देना चाहूंगा कि राजचन्द्र पवित्र नदी है। नदियाँ तो दुनिया में बहुतेरी हैं लेकिन राजचन्द्र गंगा जैसी नदी है। आपको यहां कुछ कमियाँ भी दिखाई देंगी। नदी में आपको कुछ कचरा बहता हुआ भी दिखाई देगा, घर-गृहस्थी की बातें भी सुनाई देंगी, लेकिन कितना भी हो, गंगा का पानी तो फिर भी निर्मल ही रहेगा । इसलिए राजचन्द्र तो गंगा में डुबकी लगाने जैसा है । 'अन बूड़ै - बूड़े तिरै' डूबकर ही, पानी में उतरकर ही सीख पाओगे तैरना । पानी से बचकर तैरना नहीं सीखा जा सकता । तैरना आता है कि नहीं, इसकी चिन्ता नहीं । एक डुबकी लगाओ, पवित्रता पाने के लिए। जो गंगोत्री से निपजी हुई गंगा है, उसमें तो शरीर को डुबोना होता है, पर राजचन्द्र की गंगा में अन्तरात्मा को डुबोना पड़ता है। राजचन्द्र कोई कवि नहीं है, अनुभवी है। इसलिए 'अंदाजे बयां ' कुछ 'और' है । इनके बयानों में बात ही कुछ निराली है, जो और कहीं नहीं मिलेगी । ये इस कलियुग के वह तीर्थंकर हैं, जिसे जमाने ने तीर्थंकर के रूप में स्वीकार नहीं किया। यह वे सर्वज्ञ हैं, जिनका अनुभव के द्वारों से गुजरने वालों में अपना एक नाम है । सर्वज्ञ ऐसे, जिसने जाना अपने बारे में सर्वस्व । अपने अस्तित्व को पूरा जान लेना ही स्वयं की सर्वज्ञता है । राजचन्द्र ध्रुव तारा हैं । तारे तो बहुतेरे हैं, पर ये ध्रुवतारा हैं। ये हिमालय हैं। दुनिया में पर्वत तो बहुत हैं, लेकिन हर पर्वत हिमालय नहीं हो सकता। राजचन्द्र तो हिमालय पर्वत हैं, एक अनेरा पर्वत - हिमाच्छादित अमल धवल । और दुनिया में - हजारों खिज्र पैदा कर चुकी है, नस्ल आदमी की, Jain Education International बी घंटियां मन-मन्दिर की / For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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