Book Title: Bikhre Moti Author(s): Padmasagarsuri Publisher: Ashtmangal Foundation View full book textPage 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( आरम्भ ) ज्ञान आत्मा का गुण है। जैसे-जैसे ज्ञान प्रकट होता जाता है, आत्मा शुद्ध बनती जाती है। ज्ञान पूर्वक आत्मा का विचार करना चाहिए। ज्ञान स्व और पर-दोनों को ही प्रकाशित करता है। सम्यक्ज्ञान आते ही आत्मा को परमात्मा बनाने के लिये जीवन में परिवर्तन होने लगता है और त्याग, संयम, अपरिग्रह, मैत्री, क्षमा जैसे अनंत गुण आने लगते है। 'ज्ञान' को 'सागर' की उपमा दी है। 'सागर रत्नाकर है'। 'सुमेरु' औषधिपति है। 'सागर' तल में छुपा है अगणित सुवर्ण मणि मोती रत्नों का 'अखूट खजाना' है। 'सुमेरु' के श्रृंग-श्रृंग पर उगी है, दिव्य वनस्पतियाँ, ‘संजीवनी औषधियाँ'। उहरा गोता लगाने वाला सागर तल में 'छुपे मोती-रत्नों' को प्राप्त कर लेता है। निरन्तर धैर्यपूर्वक सुमेरु की यात्रा करने वाला प्राप्त कर लेता है, 'प्राणदायी संजीवनी वनस्पतियाँ'। 'दही' के भीतर छुपा है, 'मृदु-मृदुल नवनीत' । अध्ययनरत मन के अन्तस्तल में छुपे है - 'विचारों के दिव्य भौतिक रत्न'। For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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