Book Title: Bhisshaka Karma Siddhi
Author(s): Ramnath Dwivedi
Publisher: Ramnath Dwivedi

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Page 14
________________ (१०) उत्पादक कारण, उसके लक्षण समुदाय और चिकित्या में व्यवहत होनेवाली औपधियों का उल्लेख आता है। हेतुलिगोपधज्ञान रवस्थातुरपरायणम । त्रिसूत्र शाश्वत पुण्य बुबुधे य पितामहः। (चलू१) आधुनिक चिकित्साविज्ञान से इतनी समता होते हुए भी प्राचीन आयुट की कुछ अपनी विशेपताये है। १. यह विशुद्ध जदबाद ( Materialism ) का समर्थन नहीं है। इसम आध्यात्मिक तत्वों जने मन एव आत्मा का जो स्वय दृष्ट नहीं है, दृष्ट या प्रत्यक्ष गरीर से अधिक मह्य दिया जाता है। स्थल गरीर और इन्द्रियों को जो प्रत्यक्ष है, अपेक्षा सूक्ष्म अर्थात् सन्य एवं चेतनात्मक शरीर की विवेचना को बडा स्थान दिया जाता है 'प्रन्यन हि अल्पं अनल्प अप्रत्यक्षम्' प्रत्यक्ष जिनका सानात हो सके ऐसी बात कम है और अप्रत्यक्ष ज्ञान जिनका साक्षात् न हो सके बहुत अधिक और विस्तृत हैं। अत बहुत अशों मे अनुमान की सहायता लेनी पड़ती है। अनुमान की भी सीमा होती है अत. प्रत्यक्ष के ऊपर किया गया अनुमान कचित गलत भी हो सकता है अत' आप्तोपदेश या शास्त्रप्रमाण्य की सर्वोपरि विगेपता दी गयी है। आप्तोपढेश या शास्त्र निहित ज्ञान की उपज केवल प्रत्यक्ष और अनुमान के आधार पर आश्रित न होकर ऋपियों की दिव्य-दृष्टि या अंतर्दृष्टि की विवेचना मानी जाती है । आज के वैज्ञानिकों में इस भातर्दृष्टि का सर्वथा अभाव है। वे केवल प्रत्यक्ष तथा अनुमान के आधार अथवा अपनी प्रत्यक्ष शक्ति को विविध यत्रों की सहायता से कई गुना बढाकर मनन करने हुए अपने सिद्धान्तों की स्थापना करते हैं। जिससे ये मुनि कोटि के विचारको में 'मननान्मुनयः' कहे जा सकते है । इनके भी विचार या सिद्धातपक्ष किसी कदर कम नहीं है और न इनकी महत्ता ही कम है। इनकी विचारणाएँ अर्हणीय, सर्वमान्य और ग्राह्य हैं । यदि क्वचित् इन मुनि और ऋपि वचनों में परस्पर विरोध हो, तो ऋपि वचनों का अधिक महत्व देना चाहिये। क्योंकि 'साक्षात् कृत धर्माणः ऋपयः भवन्ति ।' ये वचन आप्त शिष्ट, विबुद्ध ऐसे व्यक्तियों के हैं जो रज और तमोगुण से निर्मुक्त है जिनका तपरया के द्वारा ज्ञान का बल बढा हुआ है-जिससे भूत, भविष्य, वर्तमान त्रिकाल के ज्ञान मे जिनकी बुद्धि की शक्ति अव्याहत (कही न रुक सकनेवाली) है। इनके वाक्य संशय से हीन और सत्य होते हैं - रजस्तमोभ्या निर्मुक्तास्तपोजानवलेन ये। येपा त्रिकालममलं ज्ञानमव्याहत सदा ।। आप्ता शिष्टा विबुद्धास्ते तेषां वाक्यमसंशयम् । सत्य वक्ष्यन्ति ते कस्मादसत्य नीरजस्तमाः।। (च० सू०)

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