Book Title: Bhavanjali Author(s): Amarmuni Publisher: Veerayatan View full book textPage 4
________________ प्रकाशकीय "गुरु गौतम गौतम गौतम जपो " ध्यानमेरु से उच्चरित प्रार्थना के भक्तिपूर्ण स्वर आकाश में फैल रहे हैं । सहसा मेरे मानस पटल पर एक स्मृति चित्र उभर आया वि० सं० १९९४ को । पाथर्डी के जैन छात्रावास के छात प्रार्थना में गीत गा रहे हैं "वन्दे वीर सुवीरं सुधीरं वरं " । सर्वप्रथम पूज्य गुरुदेव का यही गीत तो मैंने उस दिन सुना था। सैकड़ों गीत आत्मशक्ति कर्मशक्ति को जगाने वाले राष्ट्रीय, सामाजिक, दार्शनिक, आध्यात्मिक तथा भक्ति क्षितिज को नया विस्तार देनवाले ये गीत, साहित्य एवं संगीत के जगत में पूज्य गुरुदेव का दिव्यावदान है । बचपन से ही मैंने शास्त्रों का एवं सूत्रों का सुस्वर पाठ किया है। हजारों की संख्या में गीत गाये हैं किन्तु जो विलआनन्द पूज्य गुरुदेव के गीतों में आया है, वह कुछ क्षण ही है । आश्चर्य होता है, इतना अद्भुत रस पूज्य गुरुदेव श्री की स्वरबद्ध एवं छन्दबद्ध रचनाओं में कैसे आता है । जब की पूज्य गुरुदेव की "मसी कागज छओ नहीं, कलम लही नहीं हाथ ।" वाली स्थिति में किशोरावस्था में बीती है । फिर भी बचपन से उनके भीतर काव्य धारा प्रवाहित रही । साथियों के बीच, दृद्ध मंडलियों में उत्सवों में स्वयं के बनाये गीत गाते थे | दादागुरु पूज्य मोतीरामजी महाराज एवं गुरु पूज्य पृथ्वीचंद जी महाराज के स्नेह पूर्ण वरद सान्निध्य में आने के बाद अध्ययन का श्री गणेश हुआ । (क) For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.orgPage Navigation
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