Book Title: Bharat ke Digambar Jain Tirth Part 5 Author(s): Rajmal Jain Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha View full book textPage 7
________________ आमुख भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी को इस बात की प्रसन्नता है कि सारे देश में स्थित दिगम्बर जैन तीर्थों का इतिहास, भूगोल, पौराणिक आख्यान, स्थापत्य, यात्रा-मार्ग तथा उपलब्ध साधनों आदि का परिचय देने वाली 'भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ' ग्रन्थमाला के अन्तर्गत यह पाँचवाँ भाग प्रकाशित हो रहा है। इस भाग में दक्षिण भारत में कर्नाटक प्रदेश में स्थित दिगम्बर जैन तीर्थों और पुरातात्विक स्थानों का क्रमबद्ध वर्णन प्रस्तुत किया गया है। पूर्व प्रकाशित चार भागों में क्रमशः उत्तर प्रदेश (दिल्ली तथा पोदनपुर-तक्षशिला सहित), 2-बिहार-बंगाल-उड़ीसा, 3-मध्यप्रदेश, 4-राजस्थान-गुजरात-महाराष्ट्र के तीर्थस्थानों का वर्णन है। पिछले भाग की भूमिका का निम्नलिखित अंश योजना के मूलभूत उद्देश्य और दृष्टिकोण पर प्रकाश डालता "हमारी सद्-आस्था को आधार देने वाले, हमारे जीवन को कल्याणमय बनाने वाले, हमारी धार्मिक परम्परा की अहिंसामूलक संस्कृति की ज्योति को प्रकाशमान रखने वाले, जनजन का कल्याण करने वाले हमारे तीर्थंकर ही हैं । जन्म-मरण के भवसागर से उबारकर अक्षय सुख के तीर पर ले जाने वाले हमारे तीर्थंकर प्रत्येक युग में तीर्थ का प्रवर्तन करते हैं अर्थात् मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करते हैं। तीर्थंकरों की इस महिमा को अपने हृदय में बसाये रखने और अपने श्रद्धान को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए हमने उन सभी विशेष स्थानों को तीर्थ कहा जहाँ-जहाँ तीर्थंकरों के जन्म आदि 'कल्याणक' हुए, जहाँ से केवली भगवान्, आचार्य और साधु 'सिद्ध' हुए, जहाँ के 'अतिशय' ने श्रद्धालुओं को अधिक श्रद्धायुक्त बनाया, उन्हें धर्म प्रभावना के चमत्कारों से साक्षात्कार कराया। ऐसे पावन स्थानों में से कुछ हैं जो ऐतिहासिक काल के पूर्व से ही पूजे जाते हैं और जिनका वर्णन पुराण-कथाओं की परम्परा से पुष्ट हुआ है। अन्य तीर्थों के साथ इतिहास की कोटि में आने वाले तथ्य जुड़ते चले गये हैं और मनुष्य की कला ने उन्हें अलंकृत किया है। स्थापत्य और मूर्तिकला ने एवं विविध शिल्पकारों ने इन स्थानों के महत्त्व को बढ़ाया है। अनादि-अनन्त प्रकृति का मनोरम रूप और वैभव तो प्रायः सभी तीर्थों पर विद्यमान है। ऐसे सभी तीर्थस्थानों की वन्दना का प्रबन्ध और तीर्थों की सुरक्षा का दायित्व समाज की जो संस्था अखिल भारतीय स्तर पर बहन करती है, उसे गौरव की अपेक्षा अपनी सीमाओं का ध्यान अधिक रहता है, और यही ऐसी संस्थाओं के लिए शुभ होता है; यह ज्ञान उन्हें सक्रिय रखता है। - इस समय भी तीर्थक्षेत्र कमेटी के सामने इन पवित्र स्थानों की सुरक्षा, पुनरुद्धार और नवनिर्माण की दिशा में एक बड़ा और व्यापक कार्यक्रम है। इसे पूरा करने के लिए हमारे प्रत्येक भाई-बहन को यथा सामर्थ्य योगदान करने की अन्तःप्रेरणा उत्पन्न होना स्वाभाविक है। यहPage Navigation
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