Book Title: Bhagwad Gita Vivechanatmak Shabdakosh
Author(s): Prahlad C Divanji
Publisher: Munshiram Manoharlal Publishers Pvt Ltd

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Page 243
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Chapter, verse and S. No. verse-quarter in the vulgate 116 (20) "" 33 117 43/3 118 14 119 44/2 120 ,, 46/2 "" 121 7.1/2 (1) 124 125 6.(18,19) ,, 42/2 "" 122 ,, 2/2 123 6/4 (2) 126 127 128 (20) "" " " " " 9/1 (3) "" ވ 29 », 18/2 ,,,,,/ 4 ,, 23/4 (18) 6.40/4 (19) 41/2 23 12/3 (4,5,6) "" (21) ,, 46 /2 43/2 (1) 7.1/3 (2) (3) 29 8/2 ,, 11/1 (4),, 13/2 27 " (5) 14/4 (6) 16/2 Critical Apparatus of Section B Reading in the N.S.P. edition of the vulgate कुले भवति धीमताम् यतते च ततो भूयः संसिद्धौ कुरुनन्दन हियते ह्यवशोऽपि सः ज्ञानभ्योऽपि मतोऽधिकः योगं युजन्मदाश्रयः नेहभूयोऽन्यत् प्रभवः प्रलयस्तथा www.kobatirth.org पुण्यो गन्धः पृथिव्यां मत्त एवेति तान्विद्धि आत्मैव मे मतम् मामेवानुत्तमां गतिम् मद्भक्ता यान्ति मामपि छ प्राप्य पुण्यकृतांलोकान् असंशयं समग्रं माम् प्रभास्मि बलं बलवतां चाहम् एभिः सर्वमिदं जगत् मायामेतां तरन्ति ते जनाः सुकृतिनोऽर्जुन Reading in the Kasmir recension जायते धीमतां कुले लभते पौर्वदेहिकम् लभते पूर्वदैहिकम् (T) लभते पौर्वदैहिकम् (C) ज्ञानभ्योऽपि मतोऽधिकः ज्ञानिभ्योऽप्यधिको मतः । (T as an alternative) असंशयं समयं वा (T) प्रकाश: (C) बलं बलवतामस्मि (T&C) 'एभिः कर्ममयं जगत् (T) स्वभिः कर्ममयं जगत् (C) मायामतितरन्ति ते (T) जनाः सुकृतिनः सदा (T and C) ततो भूयः अपि यतते सिद्धये कुरुनन्दन हियते ह्यवशोऽपि सन् ज्ञानिभ्यः च मतोऽधिकः । (21) योगं युञ्जन् मदाश्रितः Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir न पुनः किञ्चित् प्रलयः प्रभवस्तथा पुण्यः पृथिव्यां गन्धः अस्मि मत्त एव ईह तान्विद्धि आत्मैव मे मतः मम एवानुत्तमां गतिम् सिद्धान् यान्ति सिद्धव्रताः जातु गच्छति (T, J & C) प्राप्य पुण्यकृतां लोकान् (T) 205 For Private and Personal Use Only Remarks as an श्रीमतां alternative reading in C taken from R. Not noted by C. "" 33 Vallabha and the 8 comm. in G. P. edition of 1912.

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