Book Title: Bhagvana Mahavira
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 22
________________ गृहवास के तीस वर्ष / ११ बात सुनकर क्रुध हो उठा। उसने दूसरा दूत भेज प्रजापति को चावल के खेतों की सुरक्षा का आदेश दिया । दूत द्वारा वह आदेश सुन प्रजापति असमंजस में पड़ गया। उसने त्रिपृष्ठ से कहा - 'यह दूत के तिरस्कार का फल है। अभी हमारी बारी नहीं है । अश्वग्रीव ने दूत के अपमान का बदला लिया है।' त्रिपृष्ठ ने कहा- 'पिताजी ! आप चिन्ता मत कीजिए। मैं सब कुछ ठीक कर दूंगा। आप मुझे आदेश दें, मैं खेतों की सुरक्षा के लिए जाऊं।' पिता का आदेश प्राप्त कर दोनों भाई कुछ सैनिकों को साथ लेकर चले । अश्वग्रीव के कृषिमण्डल में पहुंचकर उसके अधिकारी से मिले। उससे सुरक्षा के बारे में बातचीत की। उसने बताया- ' इस पर्वतीय प्रदेश में एक दुर्दान्त सिंह है । ' 'उसका हम क्या करेंगे?' राजकुमार ने पूछा । अधिकारी ने कहा-'आपका काम है किसानों को उससे बचाना।' कुमार ने सोचा- 'बहुत लम्बा काम है, हम कब तक यहां बैठे रहेंगे?' उसने अधिकारी से विदा ली। वह सिंह की खोज में निकल गया। स्थानीय लोगों की सहायता से उसकी गुफा का पता लगा लिया। सैनिकों ने हल्ला किया। सिंह गुफा से बाहर निकल आया । सिंह पैदल चलता है, तब मैं रथ पर कैसे चढ़ रहा हूं? वह नि:शस्त्र है, तब मैं कैसे शस्त्र रखूं? यह सोच कुमार रथ से उतर गया और पास में कोई शस्त्र भी नहीं रखा। सिंह कुमार पर झपटा। कुमार ने उसके जबड़ों को पकड़ जीर्णवस्त्र की भांति उसे चीर डाला । कुमार का पराक्रम देख सब लोग चकित रह गये। कुमार ने अधिकारी को बुलाकर कहा - 'मैंने सिंह को मार डाला है । अश्वग्रीव को सूचना दे दो कि वह अब निश्चिन्त रहे । हम लोग अपनी राजधानी को जा रहे हैं ।' वही राजकुमार त्रिपृष्ठ आज कुछ जन्मों के बाद महाराज सिद्धार्थ के घर जन्म ले रहा है। अब उसके पराक्रम की दिशा बदल चुकी है। जो पराक्रम राजसी वृत्तियों की सिद्धि के लिए स्फूर्त हो रहा था, वह अब आध्यात्मिक सिद्धि के लिए स्फूर्त हो रहा है । यह दिशा - परिवर्तन आकस्मिक नहीं हुआ है, अनेक जन्मों की साधना इस जन्म में फलित हो रही है। हमें फूल को देखना है क्योंकि वह वर्तमान की सचाई है, पर मूल को विस्मृत कर फूल को नहीं देखना है, क्योंकि कारण को समझे बिना कार्य की व्याख्या नहीं की जा सकती । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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