Book Title: Bhagvana Mahavira
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 34
________________ गृहवास के तीस वर्ष / २३ वे अपने में खोए-से रहते। आस-पास के लोग सोचते- - कुमार ने राजकुल में जन्म लेकर क्या किया, जो विलासपूर्ण जीवन नहीं जीते । वे सबके प्रति करुणा और समानता का व्यवहार करते। आस-पास के लोग सोचते - कुमार ने राजकुल में जन्म लेकर क्या किया, जो जनता पर अनुशासन नहीं करते। साधारण लोग सोचते हैं कि इस दुनिया में जन्म लेने वाला हर मनुष्य प्रवाह के पीछे-पीछे चले । अधिकांश लोग ऐसे ही सोचते हैं। पर कुछ लोग प्रवाह के साथ नहीं चलते। वे स्वतंत्र दिशा में चलते हैं। वह दिशा दूसरों के लिए प्रश्नचिह्न बन जाती है। कुमार सारे राजकुल में प्रश्नचिह्न बनकर जी रहे थे। माता-पिता उन्हें अपने प्रवाह का अनुगामी बनाना चाहते थे। नंदिवर्द्धन ने भी उन्हें प्रवाहपाती बनाने की चेष्टा की । समूचा परिवार भी यही चाहता था कि कुमार उनके चरण- - चिह्नों पर चले । पर स्वतंत्र चेतना की लौ जलने पर नई दिशा उद्घाटित हो जाती है, फिर प्रवाह के साथ चलना संभव नहीं रहता । महाभिनिष्क्रमण समयचक्र अवाधगति से चलता है । वह सब अवस्थाओं के परिवर्तन में सहयोग देता रहता है । उसका योग पाकर बालक युवा और युवा बृद्ध हो जाता है और बृद्ध मौत की शरण में चला जाता है। कुमार वर्द्धमान यौवन की रेखा पर घूमते-घूमते २८ वर्ष के हो गए। उनके माता-पिता बुढ़ापे की १. (क) किन्तु माता - पिता की इच्छा का अतिक्रमण करना भी उन्हें इष्ट नहीं था । इसलिए वे हां या ना- दोनों नहीं कह पाए। माता-पिता ने उनके मौन का लाभ उठाकर विवाह की तैयारियां शुरू कर दीं। कुछ दिनों बाद राजकुमारी यशोदा के साथ कुमार वर्द्धमान का विवाह सम्पन्न हो गया यह श्वेताम्बर - परम्परा का अभिमत है 1 (ख) महावीर ने विवाह प्रस्ताव अस्वीकृत कर दिया। उनके द्वारा ऐसा किए जाने पर यशोदा और उसके पिता जितारि या जितशत्रु (कलिंग देश के राजा ) को बड़ा आघात पहुंचा और वे दोनों ही दीक्षित होकर तप करने चले गए। जितारि कलिंग देशस्थित ( वर्तमान उड़ीसा) उदयगिरि पर्वत से भुक्ति को प्राप्त हुए और यशोदा कुमारी पर्वत पर तपस्या कर स्वर्ग को गई यह दिगम्बर-परम्परा का अभिमत है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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