Book Title: Bhagvana Mahavira
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 72
________________ मूल्य-परिवर्तन/६१ भोजन न पकाना हो वह या तो भूखा रहे या मांग कर खाए। जिसे मांग कर खाना हो वह करोड़ रुपये लेकर क्या करेगा? प्रस्ताव की दोनों शर्ते बुद्धिमत्ता से शून्य हैं।' क्या इन दोनों को छोड़ने वाला भोग को नहीं छोड़ता? क्या वह त्यागी नहीं होता?' महामंत्री ने पूछा। 'अवश्य होता है।' सबने एक स्वर में कहा। महामंत्री बोला-क्या उस लकड़हारे ने स्त्री को नहीं छोड़ा? यह भोग हर आदमियों को सुलभ है। उसने भोग को अपने लिए दुर्लभ ही नहीं, असम्भव बना दिया। फिर वह त्यागी कैसे नहीं? उसने अग्नि का प्रयोग सर्वथा छोड़ दिया, फिर वह त्यागी कैसे नहीं? मगध के महामंत्री का सिर लकड़हारे के सामने नहीं झुका, किन्तु त्यागी के सामने झुका था।' महामंत्री के तर्क के सामने सबके सिर झुक गए। धर्म का सामाजिक मूल्य : गृहस्थ धर्म की आचारसंहिता का विस्तार भगवान् महावीर का युग धर्म-प्रधान युग था। राजा और प्रजा सभी लोग धर्म के सामने नतमस्तक थे। चारों ओर धर्म की शंखध्वनि सुनाई पड़ती थी। किन्तु धर्म का स्वरूप था व्यक्तिगत पूजा-पाठ और वह किया जा रहा था स्वर्ग के लिए। उससे समाज को लाभ नहीं मिल रहा था। भगवान् महावीर ने आचार-प्रधान या नीति-प्रधान धर्म का उपदेश दिया। आनन्द भगवान् के पास गया। वह बहुत बड़ा गृहपति था। उसने धर्म की जिज्ञासा की। भगवान् ने अणुव्रत और उसकी सहायक आचार-संहिता का प्रतिपादन किया। आचार-संहिता में धर्म का सामाजिक रूप प्रस्फुटित हुआ है। ___भगवान् ने कहा-'आनन्द! तुम अहिंसा का व्रत स्वीकार करना चाहते हो, पर तुम्हारा बड़ा कुटुम्ब है। हजारों गाएं हैं। सैकड़ों कर्मकर हैं। हजारों-हजारों लोगों के साथ तुम्हारा सम्पर्क है। उन सबके प्रति निर्मम रहकर तुम अहिंसा के व्रती नहीं बन सकते। तुम किसी निरपराध प्राणी का संकल्पपूर्वक प्राणघात नहीं करोगे। यह तुम्हारा अहिंसा का व्रत है। इसकी अनुपालना के साथ-साथ तुम्हें अहिंसा की आचार-संहिता का पालन भी करना होगा। तुम देखते हो आज के सामाजिक लोग थोड़ा-सा अपराध होने पर अपने कर्मकर वर्ग को डंडे से तथा गाय आदि पशुओं को लाठी से पीटते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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