Book Title: Bhagvana Mahavira
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 74
________________ मूल्य-परिवर्तन/६३ व्यवहार हैं। अचौर्यव्रत की सुरक्षा के लिए तुम ऐसा नहीं कर सकोगे। १. स्तेनाहृत, २. तस्कर प्रयोग, ३. विरुद्ध-राज्यातिक्रमण, ४. कूटतौलकूटमान, ५. तत्प्रतिरूपक व्यवहार-ये पांचों कार्य तुम्हारे लिए अनाचरणीय होंगे। आनन्द! तुम ब्रह्मचर्य का व्रत स्वीकार करना चाहते हो। बहुत सारे लोग अपनी कामवासना को अनियंत्रित रखते हैं। वे उसे जीवन का सर्वस्व मानते हैं। मैंने इससे विपरीत सत्य देखा है। जीवन का सर्वस्व है-चेतना के गहरे में स्फूर्त सहज आनन्द। कामवासना उसका सघन आवरण है। क्या तुम उसको दूर करना चाहोगे?' 'हां, भंते!' 'आनन्द! तुम जानते हो, विष-वैद्य विष की चिकित्सा कैसे करता है? सांप काटने पर समूचे शरीर में जहर फैल गया। विष-वैद्य उसकी चिकित्सा करता है। वह पहले सारे जहर को एक बिन्दु पर एकत्रित करता है। फिर उसे ही बाहर निकाल देता है। आनन्द! तुमने विवाह किया है। विवाह की परम्परा के पीछे यही रहस्य है कि व्यक्ति सर्वत्र फैली हुई वासना को एक में केन्द्रित करता है। मैंने इससे आगे का विधान किया है। उसके अनुसार तुम अपनी वासना को उस बिन्दु से भी हटाते-हटाते ब्रह्मचर्य तक पहुंच जाओगे। स्वरदारसंतोषव्रत की अनुपालना के लिए तुम्हें उसकी आचार-संहिता पर विशेष ध्यान देना होगा। कामुक वातावरण, कामचर्या, खाद्य-लोलुपता और कामभोग की तीव्र अभिलाषा रखने वाले ब्रह्मचर्य के व्रती नहीं बन सकते। तुम ब्रह्मचारी बनना चाहते हो। इसलिए तुम्हें काम को उत्तेजना देने वाली प्रवृत्तियों से बचना होगा। 'आनन्द! तुम अपरिग्रह व्रत स्वीकार करना चाहते हो, पर इच्छा परिमाण किए बिना ऐसा नहीं कर सकोगे। कुछ लोग भूमि, घर, सोना-चांदी कर्मकर, पशु, धान्य तथा अन्य घरेलू सामग्री का अनावश्यक संग्रह करते हैं। तुम ऐसा नहीं कर सकोगे। तुम्हें अपनी इच्छा को आवश्यकता से जोड़ना होगा।' आनन्द भगवान् के पास इन व्रतों को स्वीकार कर धार्मिक जीवन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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