Book Title: Bhagvana Mahavira
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 98
________________ ३३. होदु सिंहडी व जडी मुंडी वा णग्गओ व चीरयरो । जदि भणदि अलियवयणं, विडंबणा तस्स वा सव्वा ।। (भ. आ. ८४३) -- कोई शिखाधारी हो, जटाधारी हो, मुंड हो, नग्न हो या वस्त्रधारी हो, यदि वह असत्य वचन बोलता है तो उसकी वह सारी साधना विडंबना है, प्रवंचना है । दर्शन और उद्बोधन / ८७ ३४. सक्का सहेऊं आसाए कंटया, अओमया उच्छहया नरेणं । अणासए जो उ सहेज्ज कंटए, वईमए कण्णसरे स पुज्जो ।। (द. ९/३/६ ) - पुरुष धन आदि की आशा से लोहमय कांटों को सहन कर लेता है, परन्तु जो किसी प्रकार की आशा रखे बिना कानों में पैठते हुए वचन-रूपी कांटों को सहन करता है, वह पूज्य है । ३५. अपुच्छिओ न भासेज्जा, भासमाणस्स अंतरा । पिट्ठिमंसं न खाएज्जा, मायामोसं विवज्जए । । (द. ८/४७) - बिना पूछे न बोले, न बीच में न बोले, चुगली न खाए और कपटपूर्ण असत्य का वर्जन करे । ३६. अप्पत्तियं जेण सिया आसु कुप्पेज्ज वा परो । सव्वसो तं न भासेज्जा, भासं हियगामिणिं । । (द. ८/४७) –जिससे अप्रीति उत्पन्न हो और दूसरा शीघ्र कुपित हो, ऐसी अहितकर भाषा सर्वथा न बोले । ३७. अलियादिणियत्ती वा मोणं वा होदि वचोगुत्ती । (मूला. ३३२ ) -असत्य वचन से निवृत्ति अथवा मौन धारण करना वाक्-संयम है । ३८. हिदमिदवयणं भासदि, संतोसकरं तु सव्वजीवाणं । Jain Education International For Private & Personal Use Only ( कार्ति. ३३४ ) www.jainelibrary.org

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