Book Title: Bhagvana Mahavira
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 80
________________ वर्तमान समस्याओं के संदर्भ में जैन धर्म का योगदान/६९ दो। यह अहिंसा है, समता है। तुम्हें इतना ही जानना है। अहिंसा के लिए समता को और समता के लिए अहिंसा को जानना सारे मानवीय ज्ञान की सार्थकता है।' अहिंसा और सह-अस्तित्व हम अपने मानसिक स्तर पर विचारों को दो भागों में विभक्त कर देते हैं-भिन्न और अभिन्न। अभिन्न विचार वाले व्यक्तियों के साथ हम रहना चाहते हैं। भिन्न विचार वाले व्यक्तियों के साथ हम रहना नहीं चाहते। उन्हें समाप्त करना चाहते हैं। यह व्यापक संघर्ष है, यही युद्ध है। महावीर ने इस समस्या के अंतस् को देखकर कहा-'मनुष्य कितना स्थूलदर्शी है। वह थोड़े से गहरे में भी उतरकर नहीं देखता। ऊपर-ऊपर से जो भेद दिखाई दे रहा है, उसके नीचे कितना अभेद छिपा हुआ है। ये अभेद और भेद एक ही साथ रहते हैं, इनमें कोई विरोध नहीं है। तब मनुष्य में विरोध को समाप्त करने की दृष्टि क्यों होनी चाहिए?' यह विरोध अपने ही कषाय का है। यह विरोध अपने ही कषाय से उत्पन्न हिंसा का है। कषाय को शांत करने पर, चित्त और मन को निर्मल करने पर यह विरोध अपने आप मिट जाता है। अभेद वस्तु का धर्म है, वह रहेगा। भेद वस्तु का धर्म है, वह भी रहेगा। अहिंसा का विकास होने पर विरोध नहीं रहता, सह-अस्तित्व में कोई बाधा नहीं रहती। अहिंसा चेतना की विकसित अवस्था है। जिनकी चेतना अविकसित होती है, वे ही मनुष्य दूसरों को केवल भिन्न मानकर विरोधी मानते हैं और उन्हें समाप्त करने का प्रयत्न करते हैं। विकसित चेतना वाले मनुष्य कोरा भेद कहीं देखते ही नहीं। उनकी दृष्टि भेद पर जाती है, उसी क्षण भेद के साथ जुड़ा हुआ अभेद उनके सामने आ जाता है। यह भेदाभेदात्मक दृष्टिकोण ही सह-अस्तित्व की वास्तविका भूमिका है। केवल अभेद में सह-अस्तित्व का प्रश्न ही नहीं उठता। सह-अस्तित्व तब होता है जब कोई दूसरा हो, भिन्न हो। केवल भेद में सह-अस्तित्व ही नहीं हो सकता। उसमें सह-अस्तित्व के लिए अपेक्षित सामान्य आधार नहीं मिलता। कुछ अभेद होता है, सामान्य आधार होता है। कुछ भेद होता है, अपनी-अपनी विशेषता होती है तभी सह-अस्तित्व का सिद्धान्त व्यवहार में आता है। अहिंसा तभी उजागर होती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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