Book Title: Bhagvana Mahavira
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 71
________________ ६०/ भगवान् महावीर नाम जुड़ा हुआ नहीं है। ये या इनकी कोटि के विचार विश्व के अन्य महापुरुषों ने भी दिये हैं। पर अनुसंधान करने पर पता चलेगा कि इन विचारों के पीछे भगवान् महावीर के अनुभवों और वाणी का कितना बड़ा बल है । भगवान् ने हजारों-हजारों ज्ञानी और आचारवान् व्यक्तियों का निर्माण किया। वे भगवान् के सिद्धांतों के प्रयोग और प्रचार में लग गए। सूर्य की हजार रश्मियां एक साथ प्रकाश फैलाने लग गईं। अभयकुमार भगवान् का उपासक था। मगध सम्राट् श्रेणिक का पुत्र और महामंत्री था । उसने भगवान् के मूल्य - परिवर्तन के कार्य में बहुत सहयोग किया । एक लकड़हारा भगवान् के संघ में प्रव्रजित हुआ। वह राजगृह में ही रहता था और वहीं लकड़ियां बेचा करता था । वह मुनि बनने के कुछ ही दिनों बाद सचिवालय के पास से जा रहा था। अभयकुमार ने उसे देखा । वह तत्काल सचिवालय से नीचे उतरा और उसने मुनि के चरणों में विनम्र प्रणाम किया। मंत्री परिषद् के सदस्य अभयकुमार के इस कार्य पर मुस्कराए। मगध साम्राज्य का महामंत्री लकड़हारे मुनि के चरणों में अपना सिर झुकाए, यह उनके अहं को मान्य नहीं हुआ। उन्होंने आखिर पूछ ही लिया - 'महामंत्री ! आपने जिसके चरणों में सिर झुकाया, वह कल तक लकड़हारा था । क्या आपको इसका पता है?' 'पता कैसे न हो? मैं उसकी दीक्षा में सम्मिलित हुआ हूं ।' 'तब फिर आपने उसे प्रणाम कैसे किया?' 'भगवान् महावीर ने भोग के स्थान पर त्याग की प्रतिष्ठा की है ।' अभयकुमार ने इसका कोई उत्तर नहीं दिया । दूसरे दिन मंत्री-परिषद् के सदस्यों के पास महामंत्री का पत्र पहुंचा कि यदि आप स्त्री और अग्नि का प्रयोग छोड़ दें तो आप राज्य-कोष से दो करोड़ मुद्राएं प्राप्त कर सकते हैं । दूसरे दिन मंत्री-परिषद् के सब सदस्य महामंत्री के पास एकत्र हुए । उन्होंने महामंत्री के प्रस्ताव पर चर्चा शुरू की। उन्होंने कहा - 'महामंत्री ! करोड़ रुपये पास में हों तभी स्त्री के सहवास का सुख प्राप्त हो सकता है और आप स्त्री का त्याग करने पर करोड़ रुपये देते हैं, यह बात जंची नहीं । स्त्री को छोड़ दें तब फिर करोड़ रुपये लेकर भी क्या करेंगे? जिसे अग्नि पर 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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