Book Title: Bhagvana Mahavira
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 57
________________ ४६/भगवान् महावीर सोए हुए परमात्मा को जगा दिया। पुरुषार्थ अकर्मण्यता और आलस्य से रुग्ण जनता को भगवान् ने पुरुषार्थ की प्रेरणा दी। भगवान् ने कहा-पुरुष! तू पराक्रम कर। जो मनुष्य अपनी शक्तियों का उपयोग नहीं करता वह अपनी दैवी सम्पदा के उपभोग से वंचित रह जाता है।' जब तक बुढ़ापा न आए, रोग का आक्रमण न हो, इन्द्रियां क्षीण न हों तब तक संयम की साधना में पराक्रम करो।' भगवान् ने भाग्यवाद को अस्वीकार नहीं किया, किन्तु पुरुषार्थ से विमुख जनता को भाग्यवाद की जकड़ से मुक्त किया । भगवान् की वाणी से समन्वय की धारा प्रभावित हुई। उसमें अकेले भाग्य का कोई स्थान नहीं है, अकेले पुरुषार्थ का भी स्थान नहीं है। भाग्य और पुरुषार्थ दोनों की संगति ही उस धारा का प्रवाह है। इस प्रवाह ने भारतीय जनता को चमत्कार, अकर्मण्यता और प्रमाद से मुक्त कर उसमें यर्थाथता, पौरुष और जागृति का रस सींचा। उससे भारतीय आत्मा उत्फुल्ल हो उठी। ग्यारह स्थापनाएं वैशाख शुक्ला एकादशी के दिन मध्यम पावापुरी के महासेन उद्यान में भगवान् ने दूसरा प्रवचन किया। उसमें भगवान् ने आत्मा के अस्तित्व का प्रतिपादन किया। उस समय वहां विशाल यज्ञ का आयोजन हो रहा था। सोमिल ब्राह्मण ने उसे आयोजित किया था। उसमें भाग लेने के लिए अनेक विद्वान् आए। उनमें इन्द्रभूति गौतम मुख्य विद्वान् थे। उन्होंने भगवान् की गाथा सुनी। वे भगवान् को पराजित करने महासेन उद्यान में पहुंचे। भगवान् ने उन्हें देखकर कहा-'इन्द्रभूति! तुम्हें आत्मा के अस्तित्व में संदेह है। क्यों, यह सच है न? भगवान् की बात सुन इन्द्रभूति स्तब्ध रह गए। उनके मन में छिपे हुए सन्देह का उद्घाटन कर भगवान् ने उन्हें आकर्षित कर लिया। इन्द्रभूति गौतम बोले-'भंते! क्या आत्मा है? आप किस आधार पर अस्तित्व बतला रहे हैं?' भगवान् ने कहा-'गौतम! मैंने आत्मा का प्रत्यक्ष किया है। मैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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